Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 107
________________ 102 जनविद्या परिमुक्क कसाय चउक्क मो, परिसिंचिय वय-गुण-सील णमो। परिसोसिय भवसिरिसलिल एमो, परिचितिय अप्पसरूव णमो 170 हरिवंससमुद्भव देव णमो, हरिवीढ णिवसिय पाय णमो। हरि-हलहर-सेविय साह णमो, हरिजाया कीय जलकील एमो ॥8॥ हरिचावचढावरण वीर णमो, हरिजइलपरपूरणधीर मो। हरिसेजारोहणु देव णमो, हरिणयणाणंदजणेर णमो॥9॥ गमो। तिहुवणसिरिकतासत्त तिहुवरणवइ धरि भत्ति छेत्त एमो। तिहुवरण-जणमरण-संतोस णमो। तिहुवणसिरिविहियणिवास णमो॥10॥ सूरियपुरि वट्ट णिजाव णमो, गिरि उज्जल किय णिक्खवण णमो। गिरि उज्जल पाविपणास णमो, गिरि उज्जल कुन णिवाण णमो॥11॥ घत्ता कि किज्जइ दव्वें, पाविय गव्वे, ___ करणय सुहेव कित्तियए। छड़ बसणसहियउ, भवभवरहियउ, होउ मरण सुसमाहियए ॥12॥

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