Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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जनविद्या
परिमुक्क कसाय चउक्क मो,
परिसिंचिय वय-गुण-सील णमो। परिसोसिय भवसिरिसलिल एमो,
परिचितिय अप्पसरूव णमो 170 हरिवंससमुद्भव देव णमो,
हरिवीढ णिवसिय पाय णमो। हरि-हलहर-सेविय साह णमो,
हरिजाया कीय जलकील एमो ॥8॥ हरिचावचढावरण वीर णमो,
हरिजइलपरपूरणधीर मो। हरिसेजारोहणु देव णमो,
हरिणयणाणंदजणेर णमो॥9॥
गमो।
तिहुवणसिरिकतासत्त
तिहुवरणवइ धरि भत्ति छेत्त एमो। तिहुवरण-जणमरण-संतोस णमो।
तिहुवणसिरिविहियणिवास णमो॥10॥ सूरियपुरि वट्ट णिजाव णमो,
गिरि उज्जल किय णिक्खवण णमो। गिरि उज्जल पाविपणास णमो,
गिरि उज्जल कुन णिवाण णमो॥11॥
घत्ता
कि किज्जइ दव्वें, पाविय गव्वे,
___ करणय सुहेव कित्तियए। छड़ बसणसहियउ, भवभवरहियउ,
होउ मरण सुसमाहियए ॥12॥

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