Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 113
________________ 108 जैन विद्या जैविद्या (शोध-पत्रिका) सूचनाएं T 1. पत्रिका सामान्यतः वर्ष में दो बार प्रकाशित होगी। 2. पत्रिका में शोध-खोज, अध्ययन-अनुसंधान सम्बन्धी मौलिक अप्रकाशित रचनाओं को ही स्थान मिलेगा। 3. रचनाएं जिस रूप में प्राप्त होंगी उन्हें प्रायः उसी रूप में प्रकाशित । किया जायगा। स्वभावतः तथ्यों की प्रामाणिकता आदि का : उत्तरदायित्व रचनाकार का रहेगा। 4. रचनाएं कागज के एक ओर कम से कम 3 सेमी. का हाशिया छोड़कर सुवाच्य अक्षरों में लिखी अथवा टाइप की हुई होनी चाहिए। अन्य अध्ययन अनुसंधान में रत संस्थानों की गतिविधियों का भी परिचय प्रकाशित किया जा सकेगा। 6. समीक्षार्थ पुस्तकों की तीन-तीन प्रतियाँ पाना आवश्यक है । 7. रचनाएं भेजने एवं अन्य सब प्रकार के पत्र-व्यवहार के लिए पता : प्रधान सम्पादक जैनविद्या B-20. गणेश मार्ग, बापूनगर जयपुर-302015 rigiririkriorfor-frikritik for- FARProf-

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