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कवि नहु
पाण्डे की जयमाल
(पंडित - गुणवर्णन)
परिविवि
विपुरिसंपत्त
जगमंडर
कलिमलखंडणे, शांतिनाह सांकरणे ।
भयमयचत्तउ, वज्जिय
परतिय छंडई,
सो पंडिउ जो
विरणयवंतु वहयण महि सोहइ,
सो पंडिउ जो मणु संबोहइ ।
सो पंडिउ जो श्रणुवय पालह ||2||
जललोले हि कलंकु पखालइ,
पंडिउ जो वसरणह
जमजरामर ||1||
परहंदोस वोलंतज लज्जइ, सो पंडिउ जो अप्पा
सो पंडिउ जो ज्ञानु उप्पावद्द, वीतरागु सो पंडिउ जो महुरउ जंपइ, घोरु होइ
सो पंडिउ जो मछर
अणुविणु
वज्जइ ।
सो पंडिउ जो श्रप्पा fies,
झायइ ||3||
श्राराहइ ।
जिसु चित्तु ग कंपइ || 4 ||
वज्जइ,
कोहु लोहु मय मोहु विवज्जइ ।
तिष्णिकाल जिगवर पद वंद ॥5॥