Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
View full book text
________________
मुनि कनककीर्ति
णेमिसुर की जयमाल
घणघायपहंजण
भवदुहभंजण,
भवियणकमलदिणेसर। णयणाणंदरण जत्थ मिजिणेसर ॥1॥
सिवएविहिणंवरण
जय
. जिरणपुंगव णेमिकुमार मो,
सुरवइ सय वंदिय पाय रणमो। मरगयमणिसावलगत्त णमो, सहसट्टसुलक्खरगजुत्त
णमो॥2॥
णमो।
पुरसंचियकामकयंत
वरजावयकुलपहचंद वहलक्खरगधम्मपयास
रगमो, दहसंजम संजमसामि
णमो ॥3॥
णमो।
वहदण्डपमारणसरीर णमो,
बहदहदुपरीसहसहण - दह सरिस सपाउ पमारण एमो,
दहपंचपमायपमुक्क
. णमो ॥4॥-..
गमो।
अट्ठदोसपरिचत्त
दहदहपणभावन परियारिणय दव्वसहाव
परियाणिय
णमो, भावि गमो, पंचमचरण
णमो॥5॥
मो।
परिवझिय जीवसमास णमो,
परिछिण्ण दुरासापास परिऽसि पसिधि पुरंधि णमो,
परिचत तिदंड तिसल्ल
मो॥6॥

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120