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जैन विद्या
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उपमान
' महाकवि पुष्पदंत द्वारा प्रयुक्त उपमानों को हम सुविधा की दृष्टि से भाव, अंग और वस्तु के रूप में विभाजित कर सकते हैं। यह विभाजन निर्दोष नहीं होगा यह समझते हुए भी सुविधा के लिए इनका वर्गीकरण कर दिया गया है1. भाव के सन्दर्भ में उपमान बुद्धि वृहस्पति,
(णाय० 1.4) प्रभुशक्ति हनुमान,
(णाय० 1.4) चारित्र्यशुद्धि गांगेय (भीष्म)
(णाय० 1.4) कामिनियों के हाव-भाव नदी जल की भौंर,
(णाय० 1.3) त्याग
(णाय० 1.4) गौरव पृथ्वी,
(णाय० 1.4) स्थिरता, उन्नत
(गाय० 1.4) गंभीरता, क्षमा समुद्र
(णाय० 1.4) उज्ज्वलता प्रोस,
(णाय० 1.6) सौम्यता, कांति चन्द्र
(गाय० 9.16, 1.5) सूर्य,
(णाय० 9.16) अभिमान ज्वाला
(णाय० 9.16) हाथी की सूंड का चारों ओर लपकना
- (णाय-1.8)
कर्ण,
मेरु,
तेज
मन
2. ग्रंग के संदर्भ में उपमान
मुख
भुजा, उरु
नई मूंग स्तंभ हाथी की सूड अर्गला
कृष्ण केश
(जस. 1.2, 1.14)
(णाय. 5.10)
(णाय. 1.7) (णाय. 1.57, 3.4).
(णाय. 4.1)
(जसहर. 1.17) (जस. 1.15, णाय. 1.5)
(णा 44.7) (जस. 1.5) (जस. 1.5) (जस. 1.8)
(जस. 1.9) (जस. 1.14, 1.23)
(णाय. 1.15)
भ्रमर कृष्णनील लेश्या कोटद्वार का कपाट मेघगर्जन जल बहनेवाली नाली दूज का चांद कमल हरिण नेत्र
वक्षस्थल' शब्दोच्चारण अंधा मनुष्य दाढ़ .