Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 99
________________ 94 जनविद्या पर स्थित, कमलधारिणी तथा हाथियों पर उठाए हुए घड़ों से अभिसिक्त कहा गया है। "अंशुमदभेदागम" ( पटल-49 ) के आधार पर लक्ष्मी की मूर्ति को कमल पुष्प पर बैठी हुई, दो भुजाओंवाली स्वर्ण सदृश वर्णवाली दिखाना चाहिए। यथा लक्ष्मी पद्म समासीना, द्वि भुजा कांचन प्रभा। हेमरत्नलोज्वलनक, कुण्डलः कर्णमण्डिता ॥ मथुरा, अमरावत, भारहुत तथा साँची आदि की कला में पद्मस्थित लक्ष्मी की अनेक मूर्तियां उपलब्ध होती हैं । गुप्तकालीन एक मूर्ति पर कमलालया लक्ष्मी का गजों द्वारा अभिषेक चित्रित मिलता है। बीजापुर के समीप "पट्टदकल" नामक स्थान में एक कलाकृति पर जलबीच कमल-शय्या पर लेटी हुई लक्ष्मी को दिखाया है। लीलाबीच कमल शय्याधारिणी की एक सुन्दर प्रतिमा श्रवणबेलगोला (मैसूर राज्य) में मिली है। वस्तुतः कमल शुभ्रता और शांति का प्रतीक है और लक्ष्मी सौन्दर्य और समृद्धि की संकेतक । ___ लक्ष्मी धन तथा सौन्दर्य की देवी कही जाती है। कमल भी सौन्दर्य का प्रतीक है। दोनों में ही सौन्दयंभाव की प्रधानता है। लक्ष्मी का वास पद्म में मानने के मूल में भी सौन्दर्यभाव ही प्रतीत होता है। लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्रमंथन से स्वीकृत है तथा कमल का वास भी जल में ही मान्य है अतएव दोनों में तादात्म्य स्थिर हो जाता है । लक्ष्मी को कमला भी कहा जाता है। कमला कहने के मूल में कमल-लक्ष्मी स्नेहभाव ही परिलक्षित है। ___महाकवि पुष्पदन्त ने लक्ष्मी को कमला, पद्मावती, कमलमुखी, कमलधरलक्ष्मी तथा कमल को कमलाकर आदि कहा है। यथा कमलासण कमला कमलमुहि तहु मुहकमलु णिहालइ। म० पु० 28.8 "महापुराण" में तीर्थंकरों के जन्म से पूर्व उनकी माताओं को होनेवाले सोलह स्वप्नों का वर्णन करते समय कमल में निवास करनेवाली बहु विलासिनी लक्ष्मी का भी वर्णन किया गया है। यथा बहुविलासिणी एलिणवासिणी। म० पु० 41.4 जिनेन्द्र भगवान् की वंदना के लिए जाते हुए समूह में एक स्त्री हाथ में कमल लिए इस प्रकार चलती है मानो वह स्वयं लक्ष्मी ही हो। यथा भाविणि का वि देवगुणभाविणी, चलिय स कमलहत्य रणं गोमियो । म० पु० 2.1 एक अन्य स्थल पर लक्ष्मी को कमल हाथ में लिए हुए कमल में निवास करनेवाली कमलमुखी कहा गया है यथा कह अग्गइ धावह कमलकरि, कमलालब कमलापरिणय सिरि । म०पू० 15.7

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