Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 98
________________ पुष्पदंत काव्य में प्रयुक्त “लक्ष्मी" -डॉ० प्रादित्य प्रचण्डिया 'दीति' काब्याभिव्यक्ति में कविसमय का योग-प्रयोग महनीय है । "कविसमय" एक पारिभाषिक शब्द है ।' कवि तथा समय के समवाय से "कविसमय" शब्द का गठन हुआ है । समयः शब्द सम् उपसर्गपूर्वक इण गतौ धातु से अच् प्रत्यय लगकर सिद्ध होता है। इसकी व्युत्पत्ति "सम्यगेतीति समय" अर्थात् जो उचितरूप से चला आ रहा है। वस्तुतः देशकाल के विपरीत होने पर भी सुदीर्घ काल से चली आ रही कवि व्यंजित वाणी जो सर्वथा यथार्थ से दूर-सुदूर हो लेकिन काव्य निबद्ध होने के कारण तथा भावगत तादात्मता, संगत-सटीक होने से "कविसमय" कहलाती है। महाकवि पुष्पदन्त का अलौकिक श्रेणी के कविसमयों में शुक्ल पक्षान्तर्गत "लक्ष्मी" पर आधृत कविसमय उल्लेखनीय है । संस्कृत से अपभ्रंश में होता हुआ यह "कविसमय" हिन्दी में व्यवहृत हुआ है। कविसमय के अनुसार लक्ष्मी का निवास पन में माना जाता है । "अमरकोश" में लक्ष्मी को पनालय, पना, कमला आदि से सम्बोधित किया गया है-"लक्ष्मी, पद्मालय, पभकमला श्री हरिप्रिया ।" "पूर्वकारणागम" ग्रंथ ( पटल012 ) में लक्ष्मी को "पद्म पत्रासनासीना पद्ममाभापग्रहस्तिनी" कहा गया है । "विष्णुधर्मोत्तरपुराण" में लक्ष्मी का वर्णन करते हुए उसे पयस्था पद्महस्तां च गंजोत्सिप्तघट प्लुता" अर्थात् पद्म

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