Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 93
________________ जनविद्या . विशेष-लिपि सुंदर अक्षर की है, 137 पत्रों तक कठिन शब्दों के संस्कृत टिप्पण दिये हैं। 8. वेष्टन संख्या 802 । भाषा-अपभ्रंश । विषय-पुराण । ग्रंथनाम-प्रादिपुराण टिप्पण। रचनास्थल-मान्यखेट। लिपि-देवनागरी। पत्र संख्या 1 से 102। अपूर्ण । आकार 32X13। : विशेष-पैतीसवीं संधि तक के अपभ्रंश से संस्कृत में टिप्पण दिये हैं । 9. वेष्टन सं० 105 । भाषा-अपभ्रंश, संस्कृत । विषय-टिप्पण । ग्रन्थनामउत्तरपुराण-टिप्पण (समुच्चय) । ग्रंथकार-श्रीचन्द्रमुनि । रचनाकाल-संवत् 1080। लिपि देवनागरी । पत्रसंख्या 57 । 'पूर्ण । प्राकार 25x11 से०मी० । लिपिस्थान-नागपुर । लिपिसमय संवत् 1577 । लेखक प्रशस्ति-संवत् 1577 वर्षे आषाढवदि 2 रविवारे । श्री मूलसंधे नंद्याम्नाये। वलात्कारगणे। सरस्वतीगच्छे। श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये । भ० श्री पद्मनंदि देवा। स्तत्प? भ० श्री सुभचन्द्रदेवा । स्तत्पट्टे भ० श्री जिनचन्द्र देवा । स्तत्प? भ० श्री प्रभाचन्द्र देवास्त त्शिष्य मुनि धर्मचन्द्रस्तदाम्नाये । षंडेलवालान्वये पाटणगोत्रे। नागपुरवास्तव्ये । संघभार धुरधर साह । लूणातत्भार्या लूग्गश्री तयोः पुत्रः चतुर्विधदान-वितरणकल्पवृक्षः । साधु अर्हदास तत्भार्या अल्हसिरि । तत्पुत्र साधु पहराज । द्वियसाधु धनराज। साधु । पहराज भार्यापाटमदे एतैःइदं शास्त्रं लिषाप्यं । ज्ञानावरणीयकर्मक्षयार्थ विधिनाभक्तया मुनि श्री धर्मचंद्राय दत्तं । 10. वेष्टन संख्या 517 । भाषा-अपभ्रश । विषय-चरित्र । ग्रंथनामणायकुमारचरिउ । ग्रंथकार-पुप्फयंत । लिपि-देवनागरी। पत्रसंख्या 71 । पूर्ण । आकार-26X11 से०मी० । विशेष—प्रति प्राचीन है किन्तु अंतिम पृष्ठ दूसरे लिपिकार ने लिखकर बाद में ग्रन्थ को पूरा किया है, ऐसा ज्ञात होता है । 11. वेष्टन संख्या 518। भाषा-अपभ्रंश । विषय-चरित्र । ग्रन्थनामणायकुमारचरिउ । ग्रन्थकार-पुप्फयंत । लिपि-देवनागरी। पत्रसंख्या 70 । पूर्ण । आकार 28X14 सै०मी० । लिपि समय-संवत् 1612 । लिपि स्थान-तक्षकगढ़ । प्रशस्ति-स्वस्ति संवत् 1612 वर्षे ज्येष्टसुदि 5 शनिवारे श्री आदिनाथ चैत्यालये । तक्षकगढ़ महादुर्गे महाराजाधिराज राउ श्रीरामचन्द्रराज्य प्रवर्तमाने श्री मूलसंधे । नंद्याम्नाये । वलात्कारगणे। सरस्वतीगच्छे श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनंदि. देवातत्त्पट्टे भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेवातत्प? भ० श्री जिनचन्द्र देवातत्प? भट्टारक श्री प्रभाचन्द्रदेवातत्शिष्यमंडलाचार्य श्री धर्मचन्द्र देवातत्शिष्य मंडलाचार्य श्री ललतकीर्तिदेवा । स्तदाम्नाये। खंडेलवालान्वये। सावडागोत्रे । सा० वीझा तद्भार्या विजय श्री तत्पुत्राः

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