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जैन विद्या
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द्वादश अंगों एवं चौदह पूर्वो से युक्त है, जैसे स्त्री अपने हाथ, पैर आदि द्वादश अंगों एवं पितृ पक्ष के सात व मातृ पक्ष के सात इन चौदह पूर्वजों से कुल स्त्री होती है, जो जिनेन्द्र के मुख से निकली उपदेशात्मक स्याद्वादरूपी सप्तभंगी से सम्पन्न है, जैसे सद् स्त्री जिनेन्द्र द्वारा उक्त शंखादि विविध लक्षणों से युक्त होकर शोभायमान होती है तथा जिनका नाम व्याकरण, वृत्ति से विख्यात है।
राजगृह नगर का वर्णन करते हुए कवि ने उत्प्रेक्षा की श्रेणी ही प्रस्तुत कर दी हैजोयइ व कमलसरलोयणेहि पच्चइ व पवरणहल्लियवणेहि। ल्हिक्कइ व ललियवल्लीहरेहिं उल्लसइ व बहुजिणवरहरेहिं । वरिणयउ व विसमवम्महसरेहिं करणइ व रयपारावयसरेहि। परिहइ व सपरिहाधरियणीर पंगुरइ व सियपायारचीरु । णं घरसि हरग्गहिँ सग्गु छिवइ णं चदमिय धाराउ पियइ । कुंकुम छडएं रणं रइहि रंगु णावइ दक्खालिय-सुहपसंगु । विरइय मोत्तिय रंगावलीहिं जं भूसिउ णं हारावलीहि । चिहिँ धरिय रणं पंचवण्णु चउवण्णुजणेण वि भइरवग्गु ।
णाय. 1.7.-1.8
कवि कहता है कि वह राजगृह मानो कमल-सरोवररूपी नेत्रों से देखता था, पवन द्वारा हिलाये हुए वनों के रूप में नृत्य कर रहा था तथा ललित लतागृहों के द्वारा मानो लुका-छिपी खेलता था, अनेक जिन-मन्दिरों द्वारा उल्लसित हो रहा था, कामदेव के विषबाणों से घायल होकर मानो अनुरक्त कपोतों के स्वर से चीख रहा था, परिखा के भरे हुए जल के द्वारा वह नगर परिधान धारण किये था तथा अपने श्वेत प्राकाररूपी चीर को अोढ़े था मानो चन्द्र की अमृतधारा को पी रहा था, कुंकुम की घटानों से जान पड़ता था जैसे वह रति की रंगभूमि हो और वहां के सुख प्रसंगों को दिखला रहा हो, वहां जो मोतियों की रंगावलियां रची गई थीं उनसे प्रतीत होता था मानो वह हार-पंक्तियों से विभूषित हो, वह अपनी उठी हुई ध्वजारों से पंचरंगा और चारों वर्गों के लोगों से अत्यन्त रमणीक हो रहा था।
कवि वस्तु-वर्णन प्रणाली एवं वर्णन-प्रवीणता दोनों में अपनी अनूठी प्रतिभा का परिचय देता है। प्रकृति-वर्णन के अन्तर्गत मगध देश की वनश्री सम्पदा, सम्पन्नता, गंगायमुना वर्णन, नारी के रूप में गंगा सौंदर्य, लंका के समुद्र का वर्णन, हिमालय-कैलाश वर्णन, सूर्योदय-चन्द्रोदय वर्णन, संध्या वर्णन, बसन्त, वर्षा, शरद् आदि ऋतु वर्णन, मगध-यौधेय आदि देश तथा राजगृह, राजपुर आदि नगर-वर्णन सूक्ष्मावलोकन से परिपूर्ण कवि की अद्भुत प्रतिभा एवं उत्कृष्ट काव्य-शैली के प्रतिनिदर्शन हैं । युद्ध वर्णन, जल-क्रीड़ा, उपवनक्रीड़ा, नृत्य-गान, संगीत, गोपियों आदि के वर्णन, नख-शिख वर्णन बड़े ही रोचक तथा अनुपम हैं।