Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 18
________________ जनविद्या . (4) बन्दना प्रकरण पुष्पदंत ने अपनी रचना के प्रारम्भ में, काव्यारम्भ से पहले जैन कवियों की मान्यता के अनुसार पंच-परमेष्ठी को प्रणाम किया है । ये "पंचगुरु" वा पंचपरमेष्ठी हैं-अर्हत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और साधु । पुष्पदंत ने उन्हें कलि-मलवजित और सद्गुणों से परिपूर्ण कहा है । पंचगुरु को प्रणाम करने के पश्चात् ही वे वागीश्वरी सरस्वती की वन्दना करते हैं। (5) सष्टि की स्थिति के विषय में जैन-मान्यता प्रारम्भ में जैन पौराणिक शैली के अनुसार पुष्पदंत ने जिनेन्द्र भगवान् का हवाला देते हुए अनन्तानन्त आकाश, उसके मध्य में स्थित त्रिभुवन, त्रिभुवन के अन्दर मध्य लोक में स्थित जम्बूदीप, उसके अन्तर्गत मेरु पर्वत, उस पर्वत की दाहिनी दिशा में स्थित भरत क्षेत्र का उल्लेख किया है। जैन मान्यता के अनुसार वे कहते हैं- यह त्रिलोक न ब्रह्मा द्वारा निर्मित है, न विष्णु द्वारा प्राधृत और न शिव द्वारा विनष्ट किया जाता है । (6) मगध, राजधानी राजगह, राजा श्रेणिक का उल्लेख जैन मान्यता के अनुसार पुष्पदंत ने मगध, राजगृह और श्रेणिक का गौरव के साथ उल्लेख करते हुए कहा है कि राजा श्रेणिक क्यों और किस प्रकार भगवान् महावीर के दर्शन के लिए विपुलाचल पर्वत पर गये। (7) जिनेन्द्र का प्रवचन . जैन मान्यता के अनुसार, पुष्पदंत ने कहा कि वन्दना/भक्ति के पश्चात् श्रेणिक मनुष्यों के लिए निर्धारित कोठे में बैठ गये तब परमेष्ठी भगवान् के मुख से दिव्यवाणी खिरने लगी। उन्होंने पंचास्तिकाय, व्रत, कषाय, प्रतिमाएँ, पुद्गल द्रव्य, द्वादश-अंग, आदि समस्त विषयों पर सम्यक् प्रकाश डाला। (8) स्तुतियाँ पौराणिक शैली में लिखित कथा-काव्यों में प्रायः अनेक स्तुतियां संकलित पायी जाती हैं । श्रद्धालु पात्र प्रसंगानुसार जिनेन्द्र भगवान् की तथा मुनियों की वन्दना करके स्तुति करते दिखाये जाते हैं । इन स्तुतियों में स्तुत्य का जयजयकार करते हुए गुणगान किया जाता है। जनसाधारण ऐसी स्तुतियों को कण्ठस्थ करके आवश्यकतानुसार उनका पठन वा गान भी किया करते हैं । पुष्पदंत ने ऐसी स्तुतियों की लोकोपयोगिता का ध्यान रखते हुए निम्नलिखित स्तुतियाँ "णायकुमारचरिउ" में प्रस्तुत की हैं 1. विपुलाचल पर मगध के राजा श्रेणिक कृत जिनेन्द्र महावीर की स्तुति, जिसके द्वारा उन्होंने अपने जन्म-जन्मान्तर के कर्मों की धूलि को झाड़कर दूर किया (1:11)। 2. जिनेन्द्र मन्दिर में पृथ्वीदेवी कृत भगवान् की स्तुति (2.3) ।

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