Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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बीसवां बोल संग्रह
६०१-श्रुत ज्ञान के बीस भेद मतिज्ञान के बाद शब्द और अर्थ के पर्यालोचन से होने वाले ज्ञान को श्रुतज्ञान कहते हैं । इसके बीस भेद हैं
पज्जय अश्वर पय संघाया, पडिवत्ति तह य अणुओगो। पाहुइबाहुड पादुड, वत्यू पुबा य ससमासा ॥
शहाथ-(पञ्जय) पर्याय श्रुत, (अक्खर) अनर श्रुत, (फ्य) पढश्रुन, (गंधाय) संघात श्रुत, (पडिवत्ति)प्रतिपत्ति श्रुत, (तह य) उनी प्रचार (अणुरोगो) अनुयोग श्रुन, (पाहुडपाहुड)प्रामृत प्राभूत श्रुत, (पाहुड) प्रामृत श्रुत, (पत्थू) वस्तु श्रुत (य) और (पुच) पू श्रुत ये दमों (मममासा) समास सहित है-अर्थात् दसों के साथ समान शब्द जोड़ने से दूसरे दस भेद भी होते हैं।
(१) पर्याय श्रुत-लब्धि अपर्याप्त सूक्ष्म निगोद के जीव को उत्पत्ति के प्रथन समय में कुश्रुत का जो सर्व जघन्य अंश होता है, उसकी अपेक्षा दूसरे जीव में श्रुत ज्ञान का जो एक अंश बढ़ता है उसे पर्याय श्रुत कहते हैं।
(२) पर्याय समास श्रुत-दो, तीन आदि पर्याय श्रुत, जो दूसरे जीवों में बढ़े हुए पाये जाते हैं, उनके समुदाय को पर्याय समास श्रुत कहते हैं।
(३) अक्षर श्रुत-अ आदि लब्ध्यक्षरों में से किसी एक अक्षर को अन्दर श्रुत कहते हैं।
(४) वृक्षर समास श्रुत-लव्ध्यक्षरों के समुदाय को अर्थात्