Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 7
________________ प्रकाशकीय 'जैन-इतिहास को प्रसिद्ध कथाएँ' के रूप में जैन-साहित्य कथामाला का यह चतुर्थ भाग आपके हाथों में है। जीवन-निर्माण के लिए सुन्दर-प्रेरणाप्रद कथा-साहित्य की उपयोगिता सुनिश्चित है। हम चाहते हैं कि इस प्रकार के प्रेरक साहित्य के माध्यम से हमारे बालक - बालिकाएँ, तथा युवक-युवतियाँ, अपने जीवन का निर्माण करें एवं इनसे प्रेरणा व उच्च संस्कार प्राप्त करें। यह तभी हो सकता है, जब यह साहित्य हर घर में, हर युवक और बालक के हाथ में पहुँचे । यह जिम्मेदारी जितनी हमारी साधु-संतो की है, जितनी साहित्य प्रकाशन संस्थानों की है, उतनी ही मातापिताओं की भी है । अत: आवश्यक है, हम सभी अपने-अपने उत्तर-दायित्वों को समझ कर उनका उचित निर्वाह करें। हमें प्रसन्नता है कि समाज में साहित्य पढ़ने की रुचि जागृत हो रही है, पाठक-वर्ग प्रबुद्ध हो रहा है और वह इस प्रकार के सुन्दर साहित्य का आदर कर रहा है। श्रद्धय उपाध्यायश्रीजी हमें जिस प्रकार का मौलिक, सुन्दर और निर्माणकारी साहित्य दे रहे हैं, यह हमारे सौभाग्य के साथ ही गौरव की भी बात है। उनकी अमूल्य साहित्यिक सेवाओं का ऋण समाज अपनी सांस्कृतिक समृद्धि से उतार सकेगा। हमें विश्वास है कि उनकी वाणी और लेखनी के अमूल्य प्रसाद से हमारी सांस्कृतिक समृद्धि निरन्तर बढ़ती ही रहेगी। इसी भावना के साथ मंत्री -सन्मति ज्ञानपीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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