Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 12
________________ १३६ जैनहितैषी • wwwmmmmmmmmmmmmmmmmwww कुछ अंश मिलाये तो मालूम हुआ कि संस्कृत पद्मपुराण इसको सामने रखकर इसकी छाया पर कुछ विस्तारके साथ बनाया गया है। बहुतसे पद और भाव बिलकुल एकसे मिलते हैं। रचनाक्रम और कथानुसन्धान भी प्रायः एकसा है। इस समय हम इस ग्रन्थका स्वाध्याय कर रहे हैं। आगे चलकर हम इसके विषयमें एक विस्तृत लेख लिखना चाहते हैं। उस समय हम इन दोनोंकी रचनाका अधिक स्पष्टताके साथ मिलान करेंगे और यह भी बतला सकेंगे कि इसमें कोई बात ऐसी है या नहीं जो दिगम्बर या श्वेताम्बर सम्प्रदायकी खास बात हो और जिससे कहा जा सके कि इसके कर्ता किस सम्प्रदायके थे । अभी तक हमने इसका जितना अंश देखा है उसमें कोई बात, ऐसी नहीं मिली। हम आशा करते हैं कि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायके विद्वान् इस ग्रन्थका स्वाध्याय करेंगे और इसकी प्राचीनता साम्प्रदायिकता आदिके सम्बन्धमें अपने अपने विचार प्रकट करेंगे। यद्यपि यह ग्रन्थ प्राकृतमें हैं और साथमें टीका या संस्कृतच्छायाआदि साधन भी नहीं है, तो भी भाषा इतनी सरल और रचना इतनी कोमल तथा सुन्दर है कि साधारण संस्कृतके जाननेवाले भी परिश्रम करनेसे इसे लगा सकेंगे। ___ ग्रन्थका मूल्य ढाई रुपया है। मंत्री जैनधर्मप्रसारक सभा, भावनगरसे इसकी प्राप्ति हो सकती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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