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हालत दिखानेकी इच्छासेही प्रगटकी है सो जो कोई महाशय इससंस्था वा दोनों ग्रंथमालाओंके जीवन रखनेसे यदि कुछ भी लाभ समझते. हों तो बिनाविलंब विद्वान् महाशय तो अपने २ प्रांतमें उपदेश देकर मंदिरजीक भंडारको, पाठशालाको, पुस्तकालयको, साधारण प्राहक बनावें और धनाढ्यमहाशयोंको दानीग्राहक बनाकर १००) सौ सौ रुपये प्रथमवर्षके १२ अंकोंके और १००) वर्तमान वर्षके १२ अंकोंक भिजवाकर १२ अंकोंकी १८० प्रति मगादेवें । तथा जो धनाढ्य दानवीर हैं अपना नाम वा शास्त्रदानका पुण्यसंचय करना चाहते हैं, वे-अपन पिता वगेरहके नामस्मणार्थ एकएक ग्रंथ छपानेक लिये २००) ४००) ५००) या जितना वे चाहें एकएक रकम भेज कर यश वा पुण्यसंचय करें । जबतक दशदशरुपयोंके २०० प्राहक और सौसोरुपयोंके १०-१५ दानीग्राहक न होंगे तबतक हम आगेको यह काम नहिं चलावंगे हमने जैनहितैषी आदि पत्रोंमें भी नये नियमोंके इस्तहार दिये हैं और यह रिपोर्ट वा अपील भी आप महाशयोंकी सेवामें भेजी जाती है। यदि चैतसुदी१५तक साधारण२०० ग्राहकोंके बननेकी वा दानीमहाशयोंसे काफी द्रव्यकी स्वीकारता न जाजायगी तबतक हम इसग्रंथमालाको सर्वथा बंद रखते हैं । अतएव अभी कोईभाई रुपया न भेजें सिर्फ प्राहक होनेकी वा प्रथछपानेकी द्रव्यस्वीकारता मात्र भेजें जब चैत्रसुदी १५ को हम देखलेंगे कि प्रथ. माला चलानेलायक प्राहक वा सहायता जागई है तब तो हम फिर नये उत्साह नये परिश्रम वा नये ढंगसे इस कामको सुरू कर देंगे। यदि ग्रंथमाला चलानेलायक ग्राहक वा पूरी सहायता न आई तो वैसाखसुदी १५ तक ४२ प्राहकोंके रुपये लोटाकर तथा कर्जदारों को पुस्तकें वगेरह देकर शेष रिपोर्ट निकालकर सनातनजैनग्रंथमाला सर्वथा बंद करदेंगे।
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