Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 102
________________ अत्यावश्यकीय प्रार्थना । दानवीरमहाशयों ! इस संस्था में नीचे लिखे संस्कृत व भाषा ग्रंथ तैयार हैं यदि आपलोग सबकी एकएक प्रतिमंदिरजीके भंडार में खरीदकर विराजमान करदेंगे तो इस संस्थाका काम जो जिनवाणीजीर्णोद्वार और प्रचारका है बराबर चलता रहैगा । यदि आप कहैं कि भाषा ग्रंथतौ स्वाध्याय में कामभी आवैंगे संस्कृतग्रंथ हमारे किसकामके ? सो ऐसा विचार नहिँ करनाचाहिये । प्रथम तौ कोई न कोई आपका लड़का संस्कृतका जानकार पैदा होजायगा नहीं तो कोई भी अजैन विद्वान् आपके यहां आवेतौ उसे दिखाना इन ग्रंथोंका देखते ही उसके दिल में जैनधर्मका बड़प्पन बैठ जायगा। तीसरे भगवानकी प्रतिमाजीकी तरह इन शास्त्रों की भी नित्यपूजन विनय और रक्षा करने से भी अवश्य पुण्यकी प्राप्ति होगी - इस पंचमकाल में देवगुरुशास्त्र में से ये देव और शास्त्र दो ही तौ रहगये हैं इनकी रक्षा, प्रचार करना आपका परमधर्म व अत्यावश्यकीय कार्य है । आप्तपरीक्षा व पत्र परीक्षा स. २) समयसारजी दो टीकासहित ५) तस्वार्थराजवार्तिकजी पूर्ण ९ ) जैनद्रप्रक्रिया - गुणनंदि कृत १ || ) शब्दार्णव चंद्रिका (जैनेंद्रव्या. ) ५) | आप्तमीमांसा व प्रमाणपरीक्षा २) शाकटायनचिंतामणि १ खंड २) ये नौ ग्रंथ सनातन जैन ग्रंथमाला के १२ अंकों में छपे हैं कुल न्योछावर २६ || ) है परंतु एकसीट ( सबके सब ) लेने से १०) रुपये में ही भेज देंगे डांकखर्च १ ) रुपया जुदा लगेगा | अगर कोई महा० ) रुपयों शय दान करना चाहें तो १००) में हर ग्रंथकी पंद्रह २ प्रति भेज देंगे Jain Education International १) २) भाषा ग्रंथ । जिनशतक संस्कृत भाषाटीका ।) धर्मरत्नोद्योत चौपाईबंध धर्मप्रश्नोत्तर वचनिका शाकटायन धातुपाठ श्रीमहावीरचरित्र सैकड़ा सनातन जैनधर्म सैकड़ा षद्रव्य दिग्दर्शन सैकड़ा 12) ३) १॥ ) १ ॥ ) मिलने का पता पन्नालाल बाकळीवाल, मंत्री - भारतीय जैन सिद्धांत प्रकाशिनीसंस्था-बनारस सिटी ।। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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