Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 14
________________ - १३८ जैनहितैषी क्षित तो बेचारे कुछ जानते नहीं; परन्तु शिक्षितोंकी पुत्रकन्याओंके ब्याहकी अवस्था जितनी चाहिए उतनी क्यों नहीं बढ़ रही है, इसका कारण नहीं मालूम होता। बाल्यविवाहकी हानियाँ सब ही जानते हैं और बाल्यविवाह न करनेवाले पर कोई दण्ड किया जाता हो अथवा और कोई बड़ी रुकावट हो सो भी नहीं है, तो भी लड़कियोंका विवाह ९-१० वर्षमें कर ही दिया जाता है। अनेक युवक विद्यार्थी अवस्थामें विवाह करनेके लिए बिलकुल रजामंद नहीं होते, तो भी पितामाताके आग्रहके मारे उन्हें विवश हो जाना पड़ता है। यदि हम सब मिलकर यह निश्चय कर लें कि अपने भाईबेटोंका ब्याह १९-२० वर्षके पहले और अपनी बहिन-बेटियोंका ब्याह १५-१६ वर्षके पहले न करेंगे तो हमें इसके लिए कोई पंचायती या बिरादरी कुछ कह नहीं सकती । इस अपराधमें कोई जातिसे अलग कर दिया गया हो ऐसा अभीतक कहीं भी नहीं देखा सुना। यदि थोडासा मानसिक बल हो-दिलकी मजबूती हो तो कमसे कम शिक्षितोंमेंसे तो इस प्रथाका काला मुँह हो सकता है । इसके बाद दूसरे कारणका विचार करते हुए लेखक महाशय कहते हैं कि मस्तकसे अधिक काम लेनेसे-सोच विचार अधिक करनेसे और उसके साथ ही शरीरसेवा पर ध्यान न देनेसे भी जल्दी बुढ़ापा आ जाता है और आयु घट जाती है। शरीरको बचाकर मानसिक कार्य करनेसे एक तो काम अधिक किया जाता है और दूसरे उम्र भी अच्छी मिलती है । इस विषयमें मेरे कुछ अनुभूत नियम हैं जिनसे मैंने बहुत लाभ उठाया है। १ सप्ताहमें छहे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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