Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 22
________________ १४६ जैनहितैषी नाग (शिशुनाग) कुलका राजा था। उसने ई०सन्से ५३० वर्ष पूर्वसे ५०२ वर्ष पूर्वतक राज्य किया । बिम्बिसारका पुत्र अजातशत्रु या कुणिक था । यह कथा प्रसिद्ध है कि बिम्बिसारने अपने पुत्रको राज्यका कार्य सोंपकर एकान्तवास धारण कर लिया था; तथापि उसने पिताको मारकर राज्य पद प्राप्त किया। पीछे उसे पिताके वधका बड़ा पश्चात्ताप हुआ और वह आत्महितके उपदेशके लिए बुद्धदेवके पास गया और उन्होंने उसे अपने धर्मका उपासक बना लिया।.... बिम्बिसार और अजातशत्रुका बौद्ध और जैन दोनों ही धर्मके ग्रन्थोंमें उल्लेख है । जैनशास्त्रोंमें लिखा है और यह सर्च भी मालूम होता है कि महावीरके प्रतिष्ठित वैभवशाली सम्बन्धी जैनधर्मसे प्रेम और सहानुभूति रखते थे। अतः यह संभव है कि चेटक और बिम्बिसार (श्रेणिक ) जैन थे और अजातशत्रु ( कुंणिक ) भी कमसे कम अपने जीवनके पूर्व भागमें जैन था। अपने पिछले जीवनमें जनकवधके शोकसे दुखी होकर बुद्धदेवके उपदेशसे उसने बौद्धधर्म धारण कर लिया था । अब विचारनेकी बात यह है कि जब बिम्बिसारने अपने पुत्रके लिए राज्यकार्य छोड़ दिया था तब अजातशत्रु उसे क्यों मारता? उसको अपने पितासे राज्यके सम्बन्धमें डरनेका कोई कारण ही न था । वास्तवमें अजातशत्रुने इस कारण बौद्धमतको अंगीकार किया कि उसने वैशालीके राज्यको अपने अधिकारमें कर लिया था और वह महावीर जिनके मामाका राज्य था । वैशालीका राज्य लेलेनेपर-जब महावीरका निर्वाण हो चुका था-अजातशत्रु जैनी न रह सका और उसने अपना मत बदल लिया । वैशाली राज्यसे जैनधर्मको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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