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जयपुरराज्य, अँगरेज़ सरकार और सेठीजीका मामला। १५३
शान्तिप्रियताका उल्लेख करके अर्जुनलालजी जैसे सुशिक्षित जैन राजद्रोह करेंगे यह माननेसे साफ इंकार किया है । परन्तु जैनोंको जो यह ब्रिटिश सर्टिफिकेट मिला है, सो शहदसे लपटा हुआ है। सच बात तो यह है कि जैनजाति बहुत ही निर्बल निरीह और नाचीज़ है। वह मि० रोथफील्डके बतलाये हुए असली क्षत्रियत्वको खो बैठी है और बहुत ही पोच कमजोर बन गई है। यदि ऐसा न होता तो ऐसी शान्त निरपराध और साहूकार प्रजा पर इस प्रकारका अत्याचार या जुल्म कभी न हो सकता । सब जगह दुबले ही सताये जाते हैं ! नरम पिलपिली चीजमें सभी कोई उंगली घूसना चाहता है । ईद बकरीकी ही होती है, बाघकी ईद कहीं भी सुनाई नहीं दी। जैन यदि मिल रोथफील्डके कथनानुसार वास्तवमें क्षत्रिय होते तो अपनी सारी जातिको और धर्मको कलंक लगानेवाले इस जुल्मको वे कभी सहन न करते और इन दश महिनोंमें कोई न कोई उचित उपचार किये बिना न रहते ।
अभी अभी कुछ सज्जनोंने श्रीयुत अर्जुनलालजीके छुटकारेके लिए जयपुर राज्यको प्रार्थनापत्र भेजना शुरू किये हैं; परन्तु इस तरहकी भिक्षाओंसे हो क्या सकता है ? जो राज्य निरपराधी नागरिकोंको किसी प्रकारका दोष सिद्ध हुए बिना ही जेलमें लूंस दिया करते हैं, जिनमें वम. इतना ही प्रजाप्रेम है-इतना ही स्वदेश प्रेम है-अपने राज्यके सारे भारतवर्षमें आदत और पूजित होनेवाले हीराओंके प्रति इसी प्रकारका अभिमान है, वे राज्य क्या इस योग्य हो सकते हैं कि उनसे प्रार्थना की जाय या उनके आगे
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