Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 91
________________ ( ७ ) रूपये आपको दिये जायें तो आप काम शुरू करदेनेपर तयार हैं हम इस बक्त एकहजार और सात आठ महीने बाद एक हजार ऐसें दोहज़ार रुपये आपको दे देते हैं। आप काम शुरू कर दीजिये लेकिन शरायत यह होंगे १- ग्रंथ छपनेबाद बेचकर उससे जो रुपया वसूल होता जायगा वह हमको भेजते जाइये तो हम फिर उस रुपये को इसी काम में लगावेंगे ! २- ग्रंथपर वालचंद कस्तूरचंद धाराशिवाले (हमारे पिताजी । का नाम मुद्रित होना चाहिये क्योंकि उनके स्मारक फंड से यह रकम दी जायगी । इस वक्त जो एकहजार रुपया भेज देना है उसके बाबत बंबई की हुंडवी यहां से आप जिस पतेपर कहो भेज देता हूं । काम शुरू होने के बाद बाकी रुपया भी ऊपर लिखे मुजब भेज दूंगा 1 उत्तराभिलाषी नेमचंद बालचंद वकील उस्मानाबाद | वश फिर क्या था हमने भी सहर्ष उपर्युक्त दोनों शर्ते स्वीकार करके हुडियोंसे रुपये मा २ कर काम छपाना सुरू कर दिया । और सत्रासौ कायी तौ जर्मन, लंदन, कलकत्ता, आदिके अजैनविद्वानों पत्रसंपादकोंक समीप और लाइब्रेरियों में विनामूल्य भेजना सुरू करदिया और करीब १०० प्रतियें जैनीमहाशयोंको मूल्यप्राप्ति की इच्छा से भेजना सुरू किया परंतु अनेक महाशयोंने तौ पहुंचतक नहीं लिखी, अनेक धनाढ्य महाशयों को जब वी. पी. किया गया तो वापिस कर दिया और अनेक महाशयोंको कई पत्र दिये तो कुछ भी जनाब नहिं आया तब उन्हें भेजना ही बंद कर दिया। इसके सिवाय विज्ञापन, प्रार्थना, अपीले जैनमित्र जैनहितैषी दिगंबर जैन आदिमें बहुत कुछ छपायीं परंतु दो वर्ष के साल खतमतके कुल ७७ ग्राहक आठ २ रुपये देनेवाले और तीन महाशय सौ सौ रुपये देनेवाले दानी For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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