Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 41
________________ दान और शीलका रहस्य । १३-नज़र आए उसको अगर गैर कुत्ता। तो फिर देखिये उसका त्यौरी बदलना ॥ १४-बुरा क्यों न मानेंगे अहले-हमैय्यत । कि गैरोंसे उलफत सगोंसे अदावत ॥ १५-न जिसने कभी कौमको कौम जाना । कहे क्यों न 'मरदूद' उसको ज़माना ।। (आर्य-गजटसे) दान और शीलका रहस्य । p . ..Ol । ODE दान । नुष्यको पैदा होते ही सहायता-दया-दानकी आवश्यकता होती है । उसे प्रकृति प्रकाश और हवासे सहायता देती है. माता दूधका दान देती है, पिता वस्त्रादिकी आवश्यकता पूरी करके दया दिखाता है और कुटुम्बीजन बोलना चलना सिखाते हैं। सहायतादया-दान विना आदमी कदापि जीवित नहीं रह सकता । जिन जीवनोपयोगी पदार्थोंको हम दूसरोंसे लेकर जीवित रहते हैं, वे पदार्थ दूसरोंको न देकर जीवित रहना क्या मनुष्यत्व कहा जा सकता है ? जो मनुष्य दूसरोंकी सहायताके विना क्षणभर जीवित नहीं १ स्वात्माभिमानी । २ प्रेम। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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