Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 70
________________ नाटक समयसार भाषाटीकासहित । कविवर पं० बनारसीदासजीके भाषा नाटकसमयसारको कौन नहीं जानता । उनकी भाषा कविता जैनसाहित्यमें शिरोमाण समझी जाती है । इस अध्यात्मकी कविताका अर्थ सबकी समझमें नहीं आता था, इस कारण श्रीयुत नाना रामचन्द्र नाग (जैन ब्राह्मण ) ने भाषा बचनिकासहित इस ग्रन्थको खुले पत्रोंमें छपाया है । छपाई सुन्दर है । मूल्य २॥) बालक-भजनसंग्रह (द्वितीयभाग )। इसमें नई तर्ज़के, नई चालके २१ भजनोंका संग्रह है। इसके बनानेवाले लाला भूरामलजी (बालक)मुशरफ जयपुर निवासी हैं । मूल्य डेड आना। महेन्द्रकुमार नाटकके गायन । जयपुरकी शिक्षाप्रचारकसमिति जो महेन्द्रकुमार नामका नवीन विचारोंसे परिपूर्ण नाटक खेलती थी उसमेंके गायन छपाये गये हैं । बड़े अच्छे हैं । मूल्य एक आना। विश्वतत्त्व चार्ट। यह बढ़िया काग़ज़ पर छपा हुआ नकशा है । इसमें जैनधर्मके अनुसार सात तत्त्व और उनका विस्तार बतलाया है । जैनधर्मकी सारी बातें इसमें आ गई हैं । प्रत्येक मन्दिरमें जड़वाकर टाँगने लायक है । मूल्य दो आना। आराधना कथाकोश। - जैनकथाओंका भंडार । मूल संस्कृतसहित सुन्दरतासे छपा है। भाषा बोलचालकी सबके समझने योग्य है । पहले भागका मूल्य १।) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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