Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ ( १ ) नये छपे हुए जैन ग्रन्थ | भक्तामरचरित | इसमें प्रत्येक श्लोक, उसका अर्थ, प्रत्येक श्लोककी विस्तृत कथा, हिन्दी कविता, प्रत्येक श्लोकका मंत्र और यंत्र ये सब बातें छपाई गई हैं । कथायें बड़ी विलक्षण हैं । उनमें किस पुरुषने किस मंत्रका किस तरह जाप किया, उसको कैसी कैसी तकलीफें भोगनी पड़ीं और फिर अन्तमें उसे किस तरह मंत्रकी सिद्धि हुई इन सब बातोंकी आश्चर्यजनक घटनाओंका वर्णन किया है । भाषा बहुत सरल बनाई गई है । यह मूल संस्कृत ग्रन्थका नया अनुवाद है । कपड़ेकी सुन्दर जिल्द बँधी हुई पुस्तक है । मूल्य सवा रुपया । श्रेणिकचरित । यह अन्तिम तीर्थंकर महावीर भगवान्के परम भक्त महाराजा श्रेणिकका जो इतिहासज्ञोंमें विम्बिसारके नामसे विख्यात हैं - चरित है । इसे श्रेणिकपुराण भी कहते हैं । इसका अनुवाद मूल संस्कृत ग्रन्थ परसे पं. गजाधरलालजीने किया है । आज कलकी बोलचालकी भाषामें हैं, पुष्ट चिकना कागज़, उत्तम छपाई, कपड़ेकी पक्की जिल्द, पृष्ठ संख्या ४०० । मूल्य १ ॥ ) धर्मप्रश्नोत्तरश्रावकाचार | श्रीसकलकीर्ति आचार्यके संस्कृत ग्रन्थका सरल अनुवाद | इसमें प्रश्न और उत्तरके रूपमें श्रावकाचारकी सारी बातें बड़ी ही सरलतासें समझाई गई हैं । सब भाईयोंको मँगाकर पढ़ना चाहिए । साधारण पढ़े लिखे लोगोंके बड़े कामका ग्रन्थ है । मूल्य दो रुपया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104