Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 77
________________ प्रेमप्रभाकर। रूसके प्रसिद्ध विद्वान् महार्ष टाल्सटायकी शिक्षाप्रद कहानियोंका हिन्दी अनुवाद । बालक, वृद्ध, युवा सबके पढ़ने लायक । मूल्य एक रुपया । शुश्रूषा। इन्दौरके नामी डाक्टर ताम्बेसाहबकी प्रसिद्ध पुस्तकका अनुवाद है। निरोगी रहनेके लिए और रोगियोंकी सेवा सिखानके लिए यह पुस्तक बहुत अच्छी है । इसे पं० गिरिधर शर्माने लिखा है । मूल्य एक रुपया। कठिनाईमें विद्याभ्यास। बडी बड़ी कठिनाइयोंके रहते हुए भी जिनके हृदयमें विद्याके प्रति भक्ति होती है वे किस त्रह विद्वान् बन जाते हैं, मोची, कुम्हार, खेतिहर ; बढ़ई, मल्लाहों जैसे नीच कुलोंमें भी जन्म लेकर दरिद्रताके दुःखोंमें पड़े रहकर भी उद्योगी पुरुष कैसे बड़े बड़े विद्वान बन गये हैं, अन्धों और पतितोंने भी अपनी विद्यावृद्धि किस तरह की है, इन सब बातोंके ऐतिहासिक उदाहरण इस पुस्तकमें दिये हुए हैं । पढ़कर तबियत फड़क उठती है। विद्याभिरुचि उत्पन्न करने और उद्योगसे प्रेम करना सिखानेके लिए यह पुस्तक जादूका काम करती है। प्रत्येक भारतवासकि कानों तक इसके शब्द पहुँचना चाहिए। विद्यार्थियोंको तो अवश्य पढ़ना चाहिए । अँगरेजीमें इसकी लाखों प्रतिया बिक चुकी हैं। भाषा सुगम है । मूल्य ॥) पक्की जिल्दका दश आना। विद्यार्थीजीवनका उद्देश्य । एक छोटासा निबन्ध है । एक नामी विद्वानके उर्दू निबन्धका अनुवाद है । अनुवादक बाबू दयाचन्द्रजी गोयलीय बी. ए. । विद्यार्थी मात्रको पढ़ना चाहिए । मूल्य एक आना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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