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. श्रीवीतरागाय नमः। भारतीयजैनसिद्धांतप्रकाशिनीसंस्थाकाशीकी
द्विवार्षिक-रिपोर्ट। . . वी. नि. सं. २४३९ से २४४० की दीवाली तक।
संस्थाकी उत्पत्ति के कारण। पाठकमहाशय मैं बंबईके निवास तथा रोजगारसे विरक्त होकर किसी तीर्थस्थानमें रहकर किसी भी धार्मिक संस्थाकी सेवा करके शेषजीवन वितानेकी इच्छासे निकला था, फिरते घूमते शेषमें जब हस्तिनापुरके नवीन स्थापित ऋषभब्रह्मचर्याश्रममें चार महीन निवास किया तो वहीं पर बंगला अखवारोंके पढनेसे विचार हुआ कि"इस समय बंग देशमें साहित्यकी उन्नति व नवीन विषयकी खोज में विद्वानोंकी बड़ी भारी उत्कंठा है । यदि वहांपर बंगभाषामें कुछ जैनग्रंथ प्रकाशित करके जैनधर्मका परिचय कराया जाय तौ चिरकालसे मत्स्यमांसभोजी कालीभक्त बंगाली विद्वानोंके हृदय में अहिंसाधर्मका प्रकाश वा प्रभाव अवश्य ही पड़ सकता है" ऐसा विचार होनेपर बंगभाषाके साहित्यसे अनभिज्ञ होतेहुये भी मैंने वहीं पर 'जैनधर्मका परिचय' और 'जैनसिद्धांतप्रवेशिका' नामकी दो पुस्तकों का बंगानुबाद कर डाला और अपने एक प्रा. 'चीन मित्र बंगाली विद्वान् से भाषाका संशोधन कराकर प्रेसकापी भी तैयार कराकर मगाली परंतु छपानेकेलिये द्रव्य व बंगला प्रेसका प्रबंध वहां जंगलमें होना असंभव था। तब विचार किया गया
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