Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 84
________________ जैनप्रेसकी आवश्यकता। यहां बनारसमें कोई प्रेस ५-६ फारमसे जियादा काम नहिं देता संस्कृतका काम बड़ा ही कठिन है ५-६ बार प्रूफ देखे विना ग्रंथ शुद्ध नहिं हो सकते। यहांके प्रेस ४ बारसे जियादा शुद्ध करनेको प्रूफ नहिं देते । सो भी सामको प्रूफ देते हैं सवेरे ही ( बजे पेज शुद्धहुये चाहते हैं । हमारे संपादक सब उच्च कक्षाके विद्यार्थी हैं विद्यार्थियों को पढने घोकनेका प्रातःकाल ही उत्तम समय है। इसलिये रात्रिको ही निद्रा छोड़ शोधना पड़ता है। दिनभरकी कड़ी पढ़ाईसे मग्ज खाली होजाता है ऐसी अवस्थामें इन प्राचीन महान् ग्रंथाकों संशोधन ठीक होना अत्यंत कष्टसाध्य है। यदि घरका प्रेस हो तौ ४ बारकी जगह ८ बार प्रूफ देख सकते हैं। रातको सवेरे न देखकर दुपहरको अच्छे मन्जसे निराकुलतासे देखकर बहुत ही शुद्ध ग्रंथ छपा सकते हैं। इसके सिवाय जो काम दूसरोंके प्रेसमें ३०००) रुपये देनेपर छपता है वह घरके प्रेसमें २०००) में ही छप जायगा। दूसरेके प्रेसमें कभी २ श्याही घटिया लगा देते हैं जल्दी जल्दी छापकर खराब छपाई कर देते हैं, घरके प्रेसमें अच्छे कारीगर रखकर धीरें २ निर्णयसागरप्रेसकी छपाईसे भी बढ़िया छपाई करके सुंदर मनोरंजक ग्रंथ निकाल सकते हैं। इसलिये यदि कोई महाशय इस संस्थाको कमसे कम २०००) रुपयका दान व सहायता करें तौ संस्थाका काम बहुत ही उत्तमतासे स्थायी चल सकता है। यदि कोई महाशय दान नहिं कर सकें तौ २०००) रुपया।।) या॥) सैकड़के व्याजपर ही दें। यदि रकम जानेका डर हो तो वे प्रेस, वगेरह सब सामान बतौर गिरवीके रख सकते हैं। आशा है कि चैत्रतक कोई महाशय इस प्रार्थना पर भी ध्यान देक हमे सहायताकी स्वीकारता भेजैंगे। प्रार्थी-पन्नालाल बाकलीवाल, ठि-मदागिन जैनमंदिर पोष्ट बनारस सिरी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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