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कि-इनका मुद्रणकार्य व प्रचार कलकत्ता रहनेसे हो सकता है परंत कलकत्तेमें अनक छापेके विरोधी माइयोंका निवास विशेष देख वहां जानेका साहस न हुवा तब तर्थिस्थान, और अपने प्रयत्नसे स्थापित स्याद्वादपाठशालाके सुधार करनेकी भी इच्छा रखकर काशीमें ही रहना स्थिर कर लिया और यहीं पर आकर श्रीयुत बाबू नंदकिशोरजी व देवेंद्रप्रसाद से मिलकर उन्हींको सभापति मत्री आदि बना कर 'वंगीयसार्वधर्मपरिषत् ' नामकी एक संस्था स्थापन करके यथाशक्य परिश्रम करने लगा और श्रेष्टिवर्य नाथारंगजी गांधीको विशेष उदारतासे उत्साहके साथ कार्य प्रारंभ हो गया । परंतु
अचिरकालमें ही उक्त महाशयोंका विशेष परिचय मिलनेसे और हमारे स्वभावसे सर्वथा विरुद्धप्रकृति पानेसे लाचार होकर उक्त परिषदसे सर्वथा ही संबंध छोडदेना पड़ा और अपने उद्देश्य की सिद्धि कलिये 'श्रीजैनधर्मप्रचारिणीसभा काशी' नामकी एक नवीन संस्था स्थापन करना पडी और श्रीमान् श्रेष्ठिवर्य गांधी नेमिचंद बहालचदजी वकील उस्मानाबाद निवासीकी विशेष द्रव्यसहायता होने से सांख्य, न्याय वेदांतके ज्ञाता अंजैन विद्वानों में अहिंसा धर्म वा अने. कांत जैनसिद्धांतोंका प्रकाश करनेकेलिये तो "सतातनजैनग्रंथ माला" का प्रारंभ किया गया और सर्वसाधारण अजेनों में वा बंगदेश में जैनधर्मका प्रचार करनेकी इच्छासे हमारे प्रात:स्मरणीय पूज्यपाद गुरुवर्य पं. चुन्नीलालजी मुरादाबाद निवासीके नामस्मरणार्थ 'चुन्नीलालजैनग्रंथमाला' और बंगलाके पेपरों में जैनधर्म संबंधी लेख प्रकाशित करनेमें प्रयत्न करना प्रारंभ किया गया । परंतु विरोधियोंकी तरफसे हमारे कार्यसाधनमें ऐसे २ विरोध घदपद पर खड़े किये गये जिनका कुछ भी जवाब न देकर यथा• शक्ति कार्य करने में ही ध्यान लगाया गया। तथापि इस विरोधक कारण हमारे ग्रंथप्रकाशनकार्यमें परमसहायक दानवीर श्रष्टिवर्य
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