Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 71
________________ अनित्यभावना। श्रीपद्मनन्दि आचार्यका अनित्यपंचाशत मूल और उसका अनुवाद । अनुवाद बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तारने हिन्दी कवितामें किया है। शोक दुःखके समय इस पुस्तकके पाठसे बड़ी शान्ति मिलती है। मूल्य डेड़ आना। पंचपरमेष्ठीपूजा। संस्कृतका यह एक प्राचीन पूजाग्रन्थ है । इसके कर्ता श्रीयशोनन्दि आचार्य हैं। इसमें यमक और शब्दाडम्बरकी भरमार है। पढ़नेमें बड़ा ही आनन्द आता है । जो भाई संस्कृत पूजापाठके प्रेमी हैं उन्हें यह अवश्य मँगाना चाहिए । अच्छी छपी है। मूल्य चार आना। चौवीसी पाठ (सत्यार्थयज्ञ)। ___ यह कवि मनरँगलालजीका बनाया हुआ है। इसकी कविता पर मुग्ध होकर इसे लाला अजितप्रसादजी एम. ए. एल एल. बी. ने छपाया है । कपड़ेकी जिल्द बँधी है । मूल्य ॥) . ... जैनार्णव। इसमें जैनधर्मकी छोटी बड़ी सब मिलाकर १०० पुस्तकें हैं । सफ़रमें साथ रखनेसे पाठादिके लिए बड़ी उपयोगी चीज़ है। बहुत सस्ती है। कपड़ेकी जिल्द सहित मूल्य १।) श्रीपालचरित। पहले यह ग्रन्थ छन्द बंध छपा था। अब पं. दीपचन्दजीने सरल बोलचालकी भाषामें कर दिया है जिससे समझनेमें कठिनाई नहीं पड़ती। पक्की कपड़ेकी जिल्द बँधी है। मूल्य १) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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