Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ उदासीन-आश्रम । १७७ अच्छे अध्यापक नहीं मिलते, अच्छे उपदेशकोंका अभाव है, शिक्षाप्रचारक नहीं हैं, चारित्रसुधारक नहीं हैं, दूसरोंके दुःखोंमें दुखी होनेवाले नहीं है और परोपकारके-स्वार्थत्यागके भाव जागृत करनेवाले मूर्तिमन्त उदाहरण नहीं हैं । इसलिए जैनसमाजके लिए आवश्यक हुआ है कि वह उदासीनाश्रम स्थापित करे और उनके द्वारा इस प्रकारके काम करनेवाले तैयार करे। तनख्वाह देकर-रुपया देकर काम करनेवाले प्राप्त किये जा पकते हैं; परन्तु जैनसमाजमें शिक्षाकी और योग्यताकी इतनी कमी है कि इसमें वेतन देकर भी अच्छे कार्यकत्तो प्राप्त नहीं किये जा सकते । इसके सिवाय वैतनिक कार्यकर्ता उतना अच्छा कार्य नहीं कर सकते हैं जितना अच्छा कि स्वार्थत्यागी पुरुष कर सकते हैं। भौर, संस्थायें केवल बाहरी शक्तियोंसे चल भी तो नहीं सकती हैंअच्छी उन्नति भी तो नहीं कर सकती हैं जब तक कि उनमें छ आध्यात्मिक शक्तियों काम नहीं करती हों और ये शक्तियाँ सच्चे स्वार्थत्यागी पुरुषोंमें ही दर्शन देती हैं । अतएव आवश्यकता है कि जैनसमाजमें आध्यात्मिक शक्तिसम्पन्न पुरुष भी तैयार किये जावें और इसीके लिए उदासीनाश्रमोंका उपयोग करना चाहिए। जनसेवाका कार्य सर्वोत्तम रीतिसे स्वार्थत्यागी पुरुष ही कर सकते हैं । जिन्होंने अपने जीवनको दूसरोंके उपकारके लिए अर्पण कर दिया है उन्हींका समाज पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। विशेषकर जैनसमाजमें तो त्यागी वैरागियोंको छोड़कर दूसरोंकी बातका प्रायः असर ही नहीं पड़ता है। क्योंकि इस समाजमें चिरकालसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104