Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 56
________________ १८० जैनहितेषी - कम नहीं किया, कष्ट सहनेकी आदत नहीं डाली, ना चर्यकी रक्षाकरके शारीरिक और मानसिक शक्तियोंको नहीं बढ़ाया, ध्यानके द्वारा मनको एकाग्र करनेका अभ्यास नहीं किया, इष्टानिष्टमें साम्य भाव रखनेका प्रयत्न नहीं किया और अपने हृदयको जीवमात्रके हितके लिए करुणातत्पर नहीं बनाया वह दूसरोंकी उन्नति—दूसरोंकी भलाई कभी नहीं कर सकता । इस लिए इस प्रकारके चारित्रका अभ्यास आश्रममें अवश्य कराना चाहिए। काम करनेके लिए और उनमें सफलता प्राप्त करनेके लिए कुछ आध्यात्मिक शाक्तियोंकी जरूरत होती है और वे शक्तियाँ पवित्र चारित्र तथा तप आदि के विना प्राप्त नहीं हो सकतीं । उदासीनोंको कमसे कम तीन वर्षतक ज्ञान और चारित्रसम्बन्धी योग्यता प्राप्त करते रहनेके बाद काममें हाथ लगाना चाहिए और काम भी उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार छोटे बड़े सौंपना चाहिए; परन्तु काम करते हुए भी उन्हें अपनी योग्यता बढ़ानेका क्रम जारी रखना चाहिए । : आश्रमके प्रधान संचालक जो स्वयं भी उदासीन हों, उदासी - नोंको उनकी योग्यताका विचार करके काम सौंपें । जगह जगह जाकर उपदेश देना, व्याख्यान देना, पाठशालाओंमें अध्यापकीका काम करना, शास्त्रसभाओं में उपदेश देना, आवश्यकता होनेपर घर घर जाकर उपदेश देना, पुस्तकें लिखना, लेख लिखना, गरीबों की सहायता करना, रोगियोंकी सेवा करना, इत्यादि सब तरहके परो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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