Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 32
________________ १५६ जैनहितैषी और स्वदेशाभिमान, स्वप्रजापालन और राजकर्तव्यका । अपने राजाको ज्ञान करानेके लिए इस स्थल पर साहसपूर्वक आत्मोत्सर्ग किया है, इस अन्तिम प्रार्थनाके साथ कि मेरी भस्ममेंसे देश और धर्मका गौरव बढानेवाले अनेक सच्चे क्षत्रिय जैनपुत्र उत्पन्न हों! . * इतना लिखे जानेके बाद मालूम हुआ कि जयपुर राज्यने ता० ५ दिसम्बरको यह आज्ञा निकाली है कि “ अर्जुनलालजी सेठीका राजनीतिक षड्यंत्रोंसे निकट सम्बन्ध है और उसका यह आचरण राज्यनियमके विरुद्ध है । ऐसे पुरुषको स्वतंत्र रखना भयंकर है, इस लिए पाँच वर्ष तक या जबतक दूसरा हुक्म न निकले तबतक वह हिरासतमें रक्खा जाय ।” पाठकोंको मालूम होगा कि आरा महन्तकेस और दिल्ली षड्यंत्र केसमें पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. सन्देहके कारण पकड़े गये थे; परन्तु नियमानुकूल जाँच पड़ताल करनेसे उन पर कोई अपराध सिद्ध नहीं हुआ । ऐसे भयंकर अपराधका ज़रा भी सुबूत मिलता तो ब्रिटिश सरकार उन्हें कठिनसे कठिन दण्ड दिये बिना नहीं रहती और ऐसा होना ही चाहिए; परन्तु जब ब्रिटिश सरकार पूरी पूरी छानबीन कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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