Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 33
________________ जयपुरराज्य, अंगरेज़ सरकार और सेठीजीका मामला। १५७ चकनके अन्तम उन्हें दोषी या दण्डपात्र कहनेसे इंकार करती है तब मालूम नहीं होता कि जयपुर राज्यने आठ महीनेसे बिना अपराध प्रमाणित किय किम आधारसे हिरासतम डाल रक्खा है। क्या ब्रिटिश गज्यक अधिकारी और सरकारी वकील अपराध समझनकी या दण्ड देनेकी शक्ति नहीं रखते हैं निमम जयपुर राज्यको ब्रिटिश राज्यकी रक्षाके लिए यह कष्ट उटानकी आवश्यकता आ पड़ी है ? क्या जयपर स्टेट यह सिद्ध करना चाहता है कि ब्रिटिश राज्य एक देशी गायकी मदद के बिना अपनी रक्षा करनेमें समर्थ नहीं है ? और यदि अनुनलालजी मनमुच ही अपराधी है तो फिर उनके ऊपर बलमवल्ला मुकदमा चलाकर सजा दनम क्यों आनाकानी की जाती है ? क्या राजद्रोहीको सिर्फ नजरकैदमें रखनेकी ही मजा काफी है ? सिर्फ एक सन्देह या वहमसे किसी गरीब प्रजाको किना अपराध सिद्ध किय महीनों नजरकैद ग्वना और फिर पांच वर्ष नक कदमें रखनका आनाई डलना. इसके लिए क्या किसी अंगरेजी या दशा कानुनका आधार है : यह भी मालूम हुआ कि अभी कुछ ही दिन पहले देवदर्शन बन्द कर देनेके कारण सेठीनीने १-१२ दिन तक अन्नपानीका म्पर्श नहीं किया था। इसमे जयपुर राज्य और वायसराय माहवकी सेवामें जैनोंकी ओरमे क्षमायाचनाके लिए बीमा तार भेजे गये थे। परन्तु मेरी समझमें राजद्रोहका सन्देह होने पर भले ही वह झूठा ही क्यों न हो--इयाकी याचना कदापि ठीक नहीं हो सकती । दया नहीं, हम केवल न्याय चाहते हैं और हमारी यह मँगनी भिक्षा नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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