Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 38
________________ १६२ जैनहितैषी - राजाके विरुद्ध, विदेशी सरकारसे उचित सहायता माँगनेकी भी कोशिश न करना चाहिए । जब बाढ ही खेतको खाने लगी तब न्यायकी प्रार्थना करनेके लिए बाहर किसके पास दौड़ा जाय ! तब और क्या उपाय किया जाय ? कुछ नहीं, सहना - सहना और स्वदेशी राजाओंकी इस प्रकारकी बुद्धिके लिए आँसू बहाना, बस यही एक अच्छा मार्ग है । संभव है कि इन स्वदेशाभिमानी आँसु - ओंके प्रवाहसे देशी राजाओंके हृदय धुलकर निर्मल बन जायें और विदेशी सरकारका भी इस मामले से भारतवासियोंकी राजभक्तिके विषयमें विशेष ऊँचा खयाल हो जावे । माननयि वायसराय साहबके पास सैकड़ों अर्जियाँ कभीकी पहुँच चुकी हैं; तो भी अब तक उनका कोई फल नहीं हुआ है । कानपुरके मसजिदसम्बन्धी दंगे में हमारे इस प्रजाप्रिय अफसरने स्वयं बीच में पड़कर सैकड़ों मुसलमानोंको छोड़ दिया था । यह सच है कि जैनजाति एक रोवनी, साहसहीन और निरीह जाति है, इस लिए इससे किसी प्रकारका मय नहीं है, तथापि यह भी एक भारतवासी प्रजा है, केवल इसी नाते से इसकी प्रार्थनाओं पर ध्यान देनेमें किसी तरहकी ढील न होना चाहिए। ऐसी शान्त और राजभक्त जाति पर राजद्रोहका कलंक लग जाना जिस तरह जैन जातिके लिए बुरा है उसी तरह प्रजाप्रिय सरकारके लिए भी अहितकारक है । यह एक सामान्य नियम है कि चोरी नहीं करनेवालेको यदि लोग चोर समझकर चोर कहने लगें, तो वह कुछ दिनोंमें अपना ' अचौर्य' का अभिमान . भूलकर चोरी करनेमें प्रवृत्त हो जायगा । जिस तरह वह चोरी नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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