Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 31
________________ जयपुरराज्य, अँगरेज़ सरकार और सेठीजीका मामला । १५५ दूसरा कोई हथियार भी ये रोथफील्डके क्षत्रिय नहीं उठा सकते । तब क्या करना चाहिए ? क्या विनतियाँ या प्रार्थनायें न की जावें ? नहीं, बिलकुल नहीं । क्या हम देखते नहीं हैं कि इस तरहके सैकड़ों भिखारी रोटीके टुकड़ोंके लिए प्रार्थना करते करते थक कर मर चुके हैं ? शासनके मदके साथ दयाका रहना बहुत ही कठिन है । और भीख माँगी ही क्यों जावे और किससे माँगी जावे ? क्या देशके एक देशी राजाके विरुद्ध विदेशी राजासे ? क्या यह माँगी हुई भीख मिल जावेगी ? मिलना असंभव नहीं है; तथापि मेरी समझमें ऐसी भिक्षा माँगनेकी अपेक्षा एक स्वदेशी नागरिककी चिता जो एक स्वदेशी राजाने चेताई है और जिसकी धधकती हुई ज्वालाको उसके स्वधर्मी भाई तमाशगीर बनकर मजेसे देख रहे हैं, उस चितामें चुपचाप जल जाना ही एक क्षत्रिय जैन स्वयंसेवकके लिए अधिक शोभास्पद होगा । याद रखना चाहिए कि इस चिताकी भस्म पर भविष्यके देशभक्त युवक स्मरणस्तंभ खड़ा करेंगे और उसमें निम्नलिखित लेख लिखेंगे: जयपुरनिवासी, क्षत्रियवंशी जैनस्वयंसेवक श्रीयुत अर्जुनलालजी सेठीने अपने उच्चतम धर्म और प्रियतम देशकी गौरवरक्षार्थ दयाकी भिक्षा नहीं माँगकर, (अपूर्व स्वार्थत्यागकर ) कृतघ्न और कर्तव्यहीन जैनोंको रुलांकर जागृत करने के लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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