Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 30
________________ १५४ जैनहितैषी हाहा खाई जाय ? प्रार्थनाकी यथार्थता और प्रार्थियोंके हृदयकी पीड़ा समझनेकी योग्यता रखनेवाले मस्तक और हृदयोंकी क्या उनमें संभावना हो सकती है ? मि० रोथफील्ड, आप जैनोंके नामों परमे भले ही उन्हें क्षत्रिय ठहराइए; परन्तु उनके मुंहपरमे तो उन्हें-मैं स्वयं जैन हूँ तो भी-क्षत्रिय नहीं मान सकता। जिनके मुँह पर क्षत्रियके लक्षण हों उनके हृदयमें क्या क्षत्रियोंके शौर्य और म्वदेशप्रेमका अभाव हो सकता है ? अफसोस कि अँगरेज तो हमें क्षत्रिय बनाना चाहते हैं; परन्तु हम स्वयं — दास' ही बने रहने वश है-हम अपने नामोंके साथ · दास' पढ़को जोड़ने भी लगे हैं । रोथफील्ड साहबके इन क्षत्रियोंके हाथमें प्रार्थना करने या हाहा खानेकी तरवार और ग्लशामदकी ढाल, बस ये दो ही तो हथियार रह गये हैं। इन क्षत्रियोंकी यदि जयपुर राज्य कुछ सुनाई न करेगा तो फिर बहुत हुआ तो ये ब्रिटिश सरकारके पास पुकार मचानेका-विनती करनेका हथियार उठानेकी बहादुरी दिखलावेंगे । भला, यह हमारे कितने दुर्भाग्यकी बात है कि हमें देशी राजाओंके दुःखोंके मारे विदेशी गजाकी शरण लेनी पड़ती है । संभव है कि राजनीतिकी कोई कलम ऐसी निकल आवे जिससे ब्रिटिशसरकार भी एक देशीराज्यके इस काममें हस्तक्षेप करनेसे इंकार कर देवे । ऐसी दशामें भी हमें आशा नहीं है कि इस विषयमें जैनजातिके अगुए शान्ति, सत्य, राजनिष्ठा और धर्मानुकूल रीतिसे भी कोई उपाय करनेके लिए एकटा होंगे। मि० गांधीन जो निष्क्रिय प्रतिरोध या शान्तविरोध ( Passine Resistence ) का शस्त्र दक्षिण आफ्रिकामें उठाया था वह अथवा उससे मिलता हुआ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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