Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 19
________________ विविध प्रसंग। १४३ अच्छी बात है कि हम अपनी संस्थाओंमें अजैनविद्वानोंको बुलाने लगे हैं और अपने धर्मसाहित्यादिके विषयमें उनके विचार सुनने लगे हैं। एक दृष्टि से यह पद्धति बहुत लाभदायक है। इससे जैन. धर्मके विषयमें सर्व साधारण जनोंमें जो भ्रमपूर्ण विचार फैल रहे हैं, वे दूर होते हैं, जैनधर्मके प्रति उनकी सहानुभूति बढ़ती है और उनके साथ हमारा सौहार्द बढ़ता है। इसके सिवाय जैनेतर विद्वानोंमें जैनसाहित्यके अध्ययन मनन करनेका उत्साह भी उत्पन्न होता है । इस पद्धतिसे हम एक लाभ और भी उठा सकते हैं; परन्तु अभी तक हम उसके लिए तैयार नहीं जान पड़ते हैं और इसी लिए हम अपने उत्सवोंमें जिन विद्वानोंको अपना सभापति बनाते हैं उनसे केवल अपने धर्मसाहित्यकी और अपनी प्रशंसा ही सुनना चाहते हैं और सभ्यताके खयालसे या लिहाजसे वे भी हमारी इच्छाके अनुसार ही अपना व्याख्यान सुना जाते हैं । यदि हम कुछ सहनशील हो जावें और ये प्रतिष्ठित विद्वान् अपने व्याख्यानोंमें हमारी कुछ त्रुटियोंकी भी आलोचना किया करें, समयके परिवर्तनसे हमारे धार्मिक विश्वासोंमें जो उलट-पलट हो गया है उसकी चर्चा किया करें और हमारे आलस्य तथा प्रमादके विषयमें दो चार चुटकियाँ ले दिया करें तो उनका हम पर बहुत प्रभाव पड़ सकता है और हम अपनी त्रुटियोंको पूर्ण करनेके लिए सचेत हो सकते हैं। आशा है कि हमारे अगुए इस ओर ध्यान देंगे और इस बातकी कोशिश न करके कि सभापति हमारी इच्छानुसार ही कहें उनसे निष्पक्षभावसे यथार्थ आलोचना करनेकी प्रेरणा किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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