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विविध प्रसंग।
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चाहिए और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य हिन्दुओंकी लड़कियोंके साथ शादी करना चाहिए । नहीं तो जैनोंका अस्तित्व रहना कठिन है।" यद्यपि इस चर्चासे सभामें कुछ क्षोभसा उत्पन्न हो गया और प्रस्ताव भी पास न हुए-सभापतिने यह कहकर टाल दिया कि अभी जैन कौम इन प्रस्तावोंके लिए तैयार नहीं है; तथापि इससे इस बातका पता अवश्य लगता है कि इस संख्याकी कमीके प्रश्नने नवयुवकोंको उद्विग्न कर दिया है और अब वे इसे किसी तरह हल कर डालना चाहते हैं । हमारी समझमें अब जैनोंकी प्रत्येक जातिके मुखियोंको शीघ्र चेत जाना चाहिए और यदि उन्हें विधवाविवाह जैसे प्रस्ताव अभीष्ट नहीं हैं तो जैनसमाजको इस क्षयरोगसे बचानेके लिए दूसरे उपायोंका अवलम्बन करना चाहिए । १ जैनोंकी सम्पूर्ण जातियोंमें परस्पर विवाहसम्बन्ध जारी कर दिया जाय । २ गोत्र या साँखें टालनेके नियम ढीले कर दिये जायँ । ३ पतित स्त्री-पुरुष प्रायश्चित्त देकर फिर जातिमें मिला लिये जायँ । ४ विवाहोंका खर्च घटाया जाय और खर्चके नियम इतने सुगम कर दिये जायँ कि गरीब से गरीब वर कन्याका विवाह बिना कठिनाईके हो जाय । ५ स्त्रीके समान पुरुषको भी पुनर्विवाह करनेकी मनाई कर दी जाय। कमसे कम यह नियम तो जरूर कर दिया जाय कि जिनके पहले विवाहसे कुछ सन्तान हो वह पुनर्विवाह न कर सके अथवा ३५ या ४० वर्षकी उम्र हो जाने पर कोई भी पुरुष दूसरा विवाह न कर सके । ६ प्रत्येक पंचायत इस बातका ध्यान रक्खे कि हमारी . जातिमें कोई युवक कुँवारा तो नहीं है । यदि हो तो उसके विवाहका
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