Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 16
________________ जैनहितैषीxxnxxxxmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm कहा कि " हम लोगोंमें लड़कियोंकी संख्या कम है और फिर बहुतसे धनी मानी लोग दो दो तीन तीन या इससे ज्यादा दफे शादी करते हैं । इन दो कारणोंसे निर्धन कुटुम्बके लड़कोंको कन्यायें नहीं मिलती है और उन्हें कुँवारे रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है । अत एव विधवाविवाहकी छूट देकर यह नियम बना देना चाहिए कि ३५ वर्षकी उम्रके बाद यदि किसीको शादी करना हो तो वह विधवाके साथ करे-कन्याके साथ नहीं । इसके सिवाय अनाथाश्रम खोलकर उसमें अन्य लोगोंकी निराधार बालिकाओंको दाखिल करके पालने और पढाने लिखानेका प्रबन्ध करना चाहिए और जब वे बालिकायें विवाहयोग्य हो जावें तब उनकी शादियाँ निर्धन जैन भाइयोंके साथ करना चाहिए।" लाला भोजराजजीने इस प्रस्तावका अनुमोदन किया और कहा कि " रोडा जैनी दूसरोंकी कन्यायें लेते तो हैं परन्तु देते नहीं हैं। उन्हें देना भी चाहिए । पटियालामें १००० जैनी हैं जिनमें ३०० स्त्री और ७०० पुरुष हैं। इस तरह पुरुषोंकी संख्या ज्यादा होने से उनकी शादीके लिए एक अनाथालयकी अवश्य ही बहुत जरूरत है।" लाला प्रभुदयालजीने कहा कि “ कुरुक्षेत्रमें कुछ समय पहले जैनोंके १०० घर थे; परन्तु अब सिर्फ तीन घर रह गये हैं-सब कुँवारे ही मर गये ! इस तरह जैनोंकी आबादी घटती जी रही है।" साथमें उन्होंने यह भी कहा कि “हिन्दुस्तानमें ईसाइयोंकी संख्यामें ५० लाखकी वृद्धि हुई है जब कि हिन्दुओंमें एक करोडका घाटा पड़ा है। इसलिए हमें जागृत होना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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