Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 13
________________ विविध प्रसंग। १३७ ४ अकालवार्द्धक्य और अल्पायु। हमारे देशमें आजकल मनुष्योंकी आयु बहुत कम होने लगी है और बुढ़ापा तो यहाँ बहुत ही जल्दी आ जाता है। पचास पूरे होनेके पहले ही हमारे यहाँके स्त्रीपुरुष बूढ़े हो जाते हैं-उनमें काम करनेकी शक्ति नहीं रहती । इसके विरुद्ध विदेशोंमें, विशेषकर यूरोपमें, पचास वर्ष जवानीके मध्यकालमें समझे जाते हैं और अस्सी अम्सी नव्वै नव्वै वर्षकी उमर तक वहाँवाले अच्छी तरह कामकाज करते हैं। वास्तवमें देखा जाय तो बड़े बड़े महत्त्वके कार्य पचास वर्षके बाद ही किये जा सकते हैं, क्योंकि उस समय बुद्धि परिपक्व हो जाती है और सैकड़ों बातोंका अनुभव हो जाता है। शास्त्रमें लिखा है कि — पंचाशोर्द्ध वनं व्रजेत् ' परन्तु हमारे यहाँके महापुरुषोंकी पचासके बाद बन जानेकी शक्ति तो नहीं रहती है, वे स्वर्ग अवश्य चले जाते हैं ! इससे देशकी जो क्षति होती है उसका अन्दाज नहीं किया जा सकता। देशहितैषियोंको इस विषयमें विशेषताके साथ विचार करना चाहिए और अल्पायु और अकालमें बुढापा आ जानेके कारणको खोजकर उनसे बचनेकी शिक्षाका प्रचार करना चाहिए । अगहनकी 'भारती' पत्रिकामें एक विद्वान् लेखकने इसके दो प्रधान कारण बतलाये हैं;-एक तो बाल्यविवाह और दूसरा सीमासे अधिक मानसिक परिश्रम । बाल्यविवाहके विषयमें वे कहते हैं कि कच्ची उम्रके मातापिताकी सन्तान कभी बलवान् और दीर्घायु नहीं हो सकती । यह कच्ची उम्रका ब्याह शिक्षितों और अशिक्षितों दोनोंके लिए एकसा हानिकर है । अशि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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