________________
(
२१ )
विवाह करने वाले का अणुक्त सुरक्षित नहीं रह सकता ? हमारे ख़याल से तो कन्या भी अगर आर्यिका होकर फिर विवाह करे तो भ्रष्ट है और विधवा अगर आर्यिका आदि की दीक्षा न लेकर विवाह करले तो भ्रष्ट नहीं है । यह ठीक है कि पति के मरजाने पर स्त्री वैधव्यदीक्षा ले तो अच्छा है, परन्तु लेना न लेना उसकी इच्छा पर निर्भर है। यह नहीं हो सकता कि वह तो वैधव्यदीक्षा लेना न चाहे और हम ज़बर. दम्ती उसके सिर टीक्षा मढदे। स्त्री के समान पुरुष का भी कर्तव्य है कि वह पत्नी के मर जाने पर दीक्षा लेले । बृद्धों को ता वासकर मुनि बनजाना चाहिये। परन्तु श्राज कितने वद्ध मुनि बनते हैं ? कितने विधुर दीक्षा लेते है ? जो लोग मुनि नहीं बनते और दमग विवाह करलेते है वे क्या भ्रष्ट कहे जाते हैं अगर वे भ्रष्ट नहीं है, तो विधवाएँ भी भ्रष्ट नहीं कही जासकती। पुरुषका शीलभङ्ग तभी कहलायगा जबकि वे विवाह न करके संभोग करें। इसी तरह विधवाएँ शीलभ्रष्ट तभी कहलावेगी जबकि वे विवाह न कर के मंभोग करें या उसकी लालसा रकावे।
प्रश्न (११)-धर्मविरुद्ध कार्य, किसी हालत में (उससे भी बढ़कर धर्मविरुद्ध कार्य अनिवार्य होने पर ) कर्तव्य हो सकता है या नहीं?
उत्तर-जैनधर्म का उपदेश अनेकान्त की अपेक्षासे है। जो कार्य किमी अपेक्षासे धर्मविरुद्ध है वही दूसरी अपेक्षा से धर्मानुकूल भी है । मुनि के लिये विवाह धर्मविरुद्ध है, श्रायक के लिये धर्मानुकूल है । पति के मरने पर जिसने आर्यिका की दीक्षा ली है उसके लिये विवाह धर्मविरुद्ध है और जिस