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है कि आत्म रमणता बढ़े उतना ही बाहरी उपवासादि तप करो । गौतमने मर्यादा रहित किया तब घबड़ाकर उसे छोड़ दिया और जैनों के मध्यम मार्गके समान श्रावकका सरळ मार्ग प्रचलित किया ।
पाली सूत्रों के पढ़ने से एक जैन विद्यार्थीको वैराग्यका अद्भुत आनन्द आता है व स्वानुभवपर लक्ष्य जाता है, ऐसा समझकर मैंने मज्झनिकाय के चुने हुए २५ सूत्रोंको इस पुस्तक में भी राहुल कृत हिंदी उल्थाके अनुसार देकर उनका भावार्थ जैन सिद्धांत से मिलान किया है। इसको ध्यानपूर्वक पढ़नेसे जैनोंको और बौद्धोंको तथा हरएक तत्वखोजीको बड़ा ही लाभ व आनंद होगा । उचित यह है कि जैनोंको पाली बौद्ध साहित्यका और बौद्धोंको जैनोंके प्राकृत और संस्कृत साहित्यका परस्पर पठन पाठन करना चाहिये । यदि मांसाहारका प्रचार बन्द जाय तो जैन और बौद्धों के साथ बहुत कुछ एकता होती है । पाठकगण इस पुस्तकका रस लेकर मेरे परिश्रमको सफल करें ऐसी प्रार्थना है ।
ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जैन ।
हिसार ( पंजाब )
. ३-१२-१९३६.
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