Book Title: Jain Bauddh Tattvagyan Part 02 Author(s): Shitalprasad Bramhachari Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 8
________________ है ऐसा माना जा सक्ता है। बिलकुल शुद्ध है, मिश्रण रहित है. ऐसा तो कहा नहीं जा सकता । जैन साहित्यसे बौद्ध साहित्यके मिलने का कारण यह है कि गौतमबुद्धने जब घर छोड़ा तब ६ बर्षके बीचमें उन्होंने कई प्रवलित साधुके चारित्रको पाला । उन्होंने दिगम्बर जैन साधुके चारित्रको भी पाला । अर्थात् नग्न रहे, वेशलोंच किया, उद्दिष्ट भोजन न ग्रहण किया .मादि । जैसा कि मज्झिमनिकायके महासिंहनाद नामके १२ वें सूत्रसे प्रगट है। दि० जैनाचार्य नौमी शताब्दीमें प्रसिद्ध देवसेनजी कृत दर्शनसारसे झलकता है कि गौतमबुद्ध श्री पार्श्वनाथ तीर्थकर की परि. पाटीमें प्रसिद्ध पिहितास्रव मुनिके साथ जैन मुनि हुए थे, पीछे मतभेद होनेसे अपना धर्म चलाया। जैन बौद्ध तत्वज्ञान प्रथम भागकी भूमिकासे प्रगट होगा कि प्राचीन जैनधर्म और बौद्धधर्म एक ही समझा जाता था । जैसे जैनोंमें दिगम्बर व श्वेतांबर भेद होगये वैसे ही उस समय निर्धय धर्मसे भेदरूप बुद्ध धर्म होगया था। पाली पुस्तकों का बौद्ध धर्म प्रचलित बौद्ध धर्मसे विलक्षण है। यह बात दूसरे पश्चिमीय विद्वानोंने भी मानी है। (1) Sacred book of the East Vol. XI 1889by T. W. Rys Davids, Max Muller___Intro. Page 22-Budhism of Pali Pitakas is not only & quite different thing from Budhism as hitherto commonly received, but is autogonistio to it. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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