Book Title: Jain Bauddh Tattvagyan Part 02
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 6
________________ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकूचारित्रकी एकता अर्थात् निश्चयसे शुद्धात्मा या निर्वाण स्वरूप अपना श्रद्धान व ज्ञान व चारित्र या स्वानुभव ही निर्वाण मार्ग है। इस स्वानुभवके लिये मन, वचन, कायकी शुद्ध क्रिया कारणरूप है, तत्वस्मरण कारणरूप है, आत्मबलका प्रयोग कारणरूप है । शुद्ध भोजनपान कारणरूप है, बौद्ध मार्ग है। सम्यग्दर्शन, सम्यक संकल्प, सम्यक् वचन, . सम्यक् कर्म, सम्यकू भाजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक् समाधि । सम्यग्दर्शनमें सम्यग्दर्शन, सम्यक् ज्ञानमें सम्यक् संकल्प सम्यक्चारित्रमें शेष छः गर्मित है। मोक्षमार्गके निश्चय स्वरूपमें कोई भेद नहीं दीखता है। व्यवहार चरित्रमें जब निर्मथ साधु मार्ग वस्त्ररहित प्राकृतिक स्वरूपमें है तब बौद्ध भिक्षुके लिये सवस्त्र होनेकी आज्ञा है । व्यवहार चारित्र सुलभ कर दिया गया है । जैसा कि जैनोंमें मध्यम पात्रोंका या मध्यम व्रत पालनेवाले श्रावकोंका, ब्रह्मचारियोंका होता है। अहिंसाका, मंत्री, प्रमोद, करुणा, व माध्यस्थ भावनाका बौद्ध और जैन दोनोंमें बढ़िया वर्णन है। तब मांसाहारकी तरफ जो शिथिलता बौद्ध जगतमें भागई है इसका कारण यह नहीं दीखता है कि तत्वज्ञानी करुणावान गौतमबुद्धने कभी मांस लिया हो या अपने भक्तोंको मांसाहारकी सम्मति दी हो, जो बात लंकावतार सूत्रसे जो संस्कृतसे चीनी भाषामें चौथी पांचवीं शताब्दीमें उल्था ‘किया गया था, साफ साफ झलकती है। _____पाली साहित्य सीलोनमें लिखा गया जो द्वीप मत्स्य व मांसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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