Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 11
________________ ( ६ ) ईश्वर शब्द एक विशेष अर्थ मे रूढ था । उस समय जगत्कर्तृत्व आदि विविध शक्तियो की धारक महाशक्ति को ही ईश्वर के नाम से व्यवहृत किया जाता था, किन्तु अन्तिम कुछ शताब्दियों से ईश्वर शब्द सामान्यतया परमात्मा का निर्देशक बन गया है । ईश्वर शब्द का उच्चारण करते ही मनुष्य को सामान्य रूप से परमात्मा का बोध होता है । आज ईश्वर के उच्चारण करने पर जगत् की निर्मात्री, भाग्यविधात्री, कर्मफलप्रदात्री तथा अवतार-ग्रहित्री किसी शक्ति-विशेष का बोध नही होता है । ईश्वर एक है, सर्व व्यापक है, नित्य है, आदि बातो का भी प्राज ईश्वर शब्द परिचायक नही रहा है । आज तो ईश्वर शब्द सीधा परमात्मा का निर्देश करवाता हे । फिर चाहे कोई उसे किसी भी रूप मे स्वीकार करता हो । ईश्वर शब्द सामान्य रूप से परमात्मा का निर्देशक होने के कारण ही प्राजसर्वप्रिय बन गया है । आत्मवादा सभी दर्शनो ने ईश्वर शब्द को अपना लिया है, आत्मवादी सभी दर्शन ईश्वर को आदरास्पद स्वीकार करते है । जैनदर्शन जो सदा अनीश्रवादी कहा जाता रहा है और जिस ने ईश्वर शब्द को कभी अपनाया ही नही है । तथापि आज उस के अनुयायी सहर्ष ईश्वर का नाम लेते है, अपने को ईश्वरवादी कहने मे जरा सोच नही करते है । कारण स्पष्ट है कि ईश्वर शब्द आज वैदिकदर्शन का पारिभाषिक शब्द नही समझा जाता है । अब तो सामान्य रूप से वह परमात्मा का, सिद्ध का, बुद्ध का निर्देशक बन गया है । आज ईश्वर, परमात्मा, सिद्ध, बुद्ध, गाड (God), खुदा आदि सभी शब्द समानार्थक समझे जाते है | सैद्धान्तिक और साम्प्रदायिक दृष्टि से इन शब्दो के पीछे I

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