Book Title: Ikshukaradhyayan
Author(s): Pyarchandji Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashak Samiti

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेटेंगे" : पुरोहित बोला:-" नहीं २ ! महाराज श्राप के ज्ञान व मुदृष्टि से ही चिन्ता मिट सक्ती है। आपके वाक्यों द्वारा ही चित्त को शान्त्वना हो जाती है। महाराज! श्राप जैसे पुरुषों के दर्शन हो गये, अब भी फिर श्राप के भक्त की चिन्ता क्या दूर न हो सकेगी? तब और किससे आशा की जावेगी"। ऐसा कह कर चरणों पर शिर झुका दोनों पैर पकड़ लिये । साधु बोले:-"सुना, सुना अपना सब हाल सुना, क्या ऐसी तुझ चिन्ता है " । प्रोहित बोला:-" स्वामिन् ! इस घर अपार सम्पति है, खाने पीने आदि कोई किसी बात की कमी नहीं । स्वामिन् ! इस घर में अभी तक एक पुत्र रत्न पैदा नहीं हुश्रा । पुत्र बिन पत्नी की गोद सूनी है। स्वामिन् ! पुत्र बिन घर की शोभा नहीं, बिन पुत्र घर समशान तुल्य माना जाता है । इन सब बातों से भी अधिक बात यह है कि श्राप की इस श्राचिका को लोग बांझ बांझ कह कर मुंह तक नहीं देखते हैं । मुझे भी लोग नियुत्री कह कर पुकारते हैं । बस इसी की चिन्ता हमें रात दिन सताये रहती है । जो खाते पीते हैं वह यथा योग्य रुचता नहीं है" | साधु बाल-हमें बतलाना तो अकल्पनीय है तथापि दया लाकर तेरी चिन्ता दूर कर दे तो जैसा हम कहे वैसा करने को तैयार हो क्या" ? पुरोहित बोला:"स्वामिन् ! यह आपने क्या कहा ! हम तो श्राप के दास हैं, जैसी श्राप प्राज्ञा करेंगे वैसा ही करने को तैयार हैं, यह बात प्रतिज्ञा के साथ कहते हैं " । साधु बोलेः-"अच्छा, जब तो एक पुत्र क्या है जाश्रो दो पुत्र होंगे. पर प्रतिज्ञा का स्मरण रखना कि वे तुम्हारे दोनों पुत्र संसार परित्याग कर साधु बनेगे अतः उन्हें रोकना मत" । पुरोहित बोला:-स्वामिन् ! श्राप के बचन मुके फले, मेरे दो पुत्र हो, क्या स्वामिन् , अाप को हमारा विश्वास नहीं ? कौन ऐसा दुष्ट है जो प्रभु उपासक बनने वाले को रोके, For Private And Personal Use Only

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