Book Title: Ikshukaradhyayan
Author(s): Pyarchandji Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashak Samiti

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूल-जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइप्रो॥२४॥ छाया-या या व्रजति रजनी, न सा प्रतिनिवर्तते । अधर्म कुर्वतोस्तस्या, यान्ति रात्रयः ॥ २४॥ अन्वयार्थ-(या या) जो जो ( रजनी ) रात्रि (ब्रजति) जाती है (सा) वह ( न ) नहीं (प्रतिनिवर्तते ) पीछी लौट कर नहीं आती है ( अधर्म) पाप को (कुर्वतस्तस्य) करने वाले की (हि ) निश्चय (रात्रयः ) रात्रि (अफला) निष्फल (यान्ति ) जा रही है ।। २४ ।। हे पिता श्री ! जो जो रात्रि और दिन जा रहे हैं। वे पीछे लौट कर कभी नहीं आने के हैं। ऐसा अपूर्व समय पाकर मनुष्य पाप कर रहे हैं उन के लिये वह समय निष्फलसा जा रहा है ॥ २४ ॥ मूल-जा जा वचइ रयणी, न सा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जन्ति राइनो॥२॥ भाया-या या व्रजति रजनी, न सा प्रतिनिवर्तने । धर्मञ्च कुर्वतस्तस्य सफला यान्ति रात्रयः ॥२५॥ (या या ) जो जो (रजनी) रात्री (व्रजति ) जाती है ( सा ) वह ( न ) नहीं (प्रतिनिवर्तते) पीछी लौट कर आती है 'ऐसा समझ कर' ( धर्म ) धर्मको (च) पद पूर्णार्थ (कुर्वतस्तस्य) करने वाले ही ( रात्रयः) रात्रि ( सफला) सफल (यान्ति ) जा रही है ॥ २५ ॥ For Private And Personal Use Only

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