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(४६) (भृत्यविहीनः ) नोकर बिना (नरेन्द्रः ) राजा ( वा ) अथवा ( पोते ) जहाज में (विपन्नसारः) द्रव्य बिना (वणिग्) व्यापारी 'असमर्थ' है (वा) अथवा (तथा) तैसे ही (महीणपुत्रः ) पुत्र बिना (अहमपि ) मैं भी ( अस्मि ) हूं ॥ ३०॥
भावार्थ-हे पुत्र जननि ! जैसे इस संसार में पर बिना पक्षी उड़ने को अशक्त है। संग्राम में सेना बिना बैरी को जीतने में राजा असमर्थ है। और जहाज में द्रव्य रहित व्यापारी वर्ग अस. मर्थ है। ऐसे ही बिना पुत्र संसार में रहने के लिये मैं भी असमर्थ हूं ॥ ३०॥ मूल-सुसंभिया कामगुणा इमे ते,
सपिडिया अग्गरसा पभूया । भुंजामु ता कामगुणे पगाम,
पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ॥ ३१ ।। छाया-सुसंभृताः कामगुणा इमे ते,
संपिण्डिता अग्ररसाः प्रभूताः । भुंजावस्तस्मात्कामगुणं प्रकामं,
पश्वामामिष्यावः प्रधानमार्गम् ॥३१॥ अन्वयार्थ -(इमे) ये (संपिण्डिताः ) इकट्ठे किये हुए (सुसंभृताः ) भले प्रकार के (अग्ररसाः) प्रधान रसवाले
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