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बन्धन को तोड़ कर मोक्ष स्थान को प्राप्त करें। इस प्रकार वैराग्य भरी बातें राणी की सुन कर राजा को भी वैराग्य हो गया ।।४।। मूल-चइत्ता विउलं रज्ज,
कामभोगे य दुच्चए। निविसया निरामिसा,
निन्नेहा निप्परिग्गहा ॥ ४६ ॥ छाया-त्यक्त्वा विपुलं राज्यं, कामभोगांश्व दुस्त्यजान् ।
निर्विषयौ निरामिषौ, निःस्नेहौ निष्परिग्रहौ ॥ ४६॥
अन्वयार्थ-(विषुलम् ) लम्बा चौड़ा (राज्यम् ) राज्यको (च) और (दुस्त्यजान ) त्यागना कठिन ऐसे (कामभोगान् ) कामभोगों को (त्यक्त्वा ) छोड़कर (निर्विषयौ) विषयवासनादि रूप (निरामिषौ) आमिष करके रहित (निःस्नेही ) स्नेह (निष्परिग्रहौ) परिग्रह रहित 'होवे'४६॥
भावार्थ-राजा और रानी दोनों लम्बी चौड़ी सीमावाला राज्य और दुस्त्याज्य काम भोगों को छोड़कर विषयवासना, धन धान्य रूप आमिष, स्नेह रूप प्रतिबन्ध प्रारम्भ परिग्रह श्रादि से रहित हुए ॥४६॥ मूल-सम्मं धम्मं वियाणिता,
चेचा कामगुणे वरे । तवं पगिझाहक्खायं, घोरं घोरपरकमा ॥ ५० ॥
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