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( प्रभूताः ) बहुत से (ते) तुम्हारे ( कामगुणाः) कामभीगों की ' सामग्री ' हैं ( तस्मात् ) इस लिये ( प्रकामं ) बहुत ( कामगुणं ) काम भोगों को ( भुंजावः ) भोगे ( पश्चात् ) फिर ( प्रधानमार्गम् ) दीक्षा मार्ग को ( गमिष्यावः ) जावेंगे ॥ ३१ ॥
भावार्थ- हे प्राणपते ! दोनों पुत्र संसार त्याग रहे हैं तो त्यागने दो, श्राप ने बहुत समझाया पर वे नहीं मानते हैं तो उनकी इच्छा, जिसका अब आप क्या करें। दुनिया में कहते भी हैं कि 'जब दाखे पकन लगी. तो काग कण्ठ हुआ रोग ' । खैर जाने दो । हे नाथ ! आप के तो यह प्रचूर काम भोग सुसज्जित ऋतु अनु. कूल मनोहर इकट्ठे हो रहे हैं । भोगोपभोग भोगने के लिये एक भी ऐसा साधन न रहा है, जो कि श्राप के पास न हो । अवस्था भी अभी हाल है अत एव श्रभी तो सांसारिक सुखों का अपन दोनों अनुभव करें । फिर वृद्धावस्था होने पर संयम मार्ग ग्रहण कर लेंगे ॥ ३१ ॥
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मूल-भूत्ता रसा भोई ! जहाइ णे वत्र, न जीवियट्ठा पजहामि भोए । लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं, संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥ ३२ ॥
छाया - भुक्का रसा भोगिनि जहाति नोवयोन, जीवितार्थ प्रजहामि भोगान् ।
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