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इस्तगत (आगताः) हो रहे हैं ' वे कैस है ' (स्पन्दन्ते) अस्थिर है ' तदपि (वयं) अपन ( कामेषु) काम भोगों में (सक्ताः ) आसक्त हो रहे है ' इसलिये' (इमे) पुरोहितादिके ( यथा ) जैसे (भविष्यामः ) होवे ॥ ४ ॥
भावार्थ-हे श्रार्यपते ! भोगोपभोग की सामग्री प्रापको और मेरे को जो मिली है उसको अनेक उपाय करके सुरक्षित रखने का प्रयत्न करते हैं . पर वे आखिर अस्थिर है । तदपि उन भोगों में प्रासक होते हुए तनिक भी विचार नहीं करते हैं कि भोगों को अपन नहीं छोड़ेगे तो भोग अपने को उत्तर देदेगें । इस मे तो यही अच्छा है कि पहले ही उन्ह भोगों को छोड़ कर पुरोहितादि के जैसे अपन भी साधुवृत्ति ग्रहण करे ॥ ४५ ॥ मूल-सामिसं कुललं दिस्स,
बज्झमाणं निरामिसं ।
आमिसं सव्वमुज्झित्ता,
विहरिस्सामो निरामिसा ॥ ४६॥ छाया--सामिष कुललं द्रष्ट्वा, बाध्यमानं निरामिषम् ।
आमिषं सर्वमुज्झित्वा, विहरिष्यामि निरामिषाः॥४६॥
अन्वयार्थ-(सामिषम् ) मांस सहित (बाध्यमानं) पीड़ित (कुललम् ) गृध पक्षिकों ' और ' (निरामिषम् ) मांस रहित गृध पक्षिको 'सुख अवस्था में ' ( दृष्ट्वा ) देख कर (सर्वम् ) सम्पूर्ण (आमिषम् ) ' धन धान्य रूप
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