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( ३६ ) (लोकः)जन (अभ्याहतः) पीड़ित (वा) अथवा (केन) किस तरह ( परिवारितः ) परिवेष्टित है ( वा ) अथवा (का) कौनसी (अमोघा) अविश्राम धारा ( उक्ता) कही (चिन्तापरः) चिन्ता ग्रसित (भवामि) होता हूं ॥२२।।
भावार्थ-हे पुत्रों! किस प्रकार इस संसार में प्राणिमात्र पीड़ित और वेष्टित हो रहे हैं। और कौनसी अमोघ धारा पड़ रही है । तुमारी बाते सुन कर चिन्ताग्रसित हो रहा हूं। इस का स्पष्टीकरण किये बिना मेरे चित्त को शान्ति नहीं होगा ॥२२॥ मूल-मच्चुणाऽभाहनो लोगो, जराए परिवारिश्रो । ___ अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय बियाणह ॥२३॥ छाया-मृत्युनाभ्याहतो लोको, जरया परिवारितः ।
अमोघा रजनी उक्ता, एवं तात विजानीयात् ॥२३॥ अन्वयार्थ--(तात) हे पिता! (लोकः) प्राणी (मृत्युना) मृत्यु से (अभ्याहतः) पीड़ित और (जरया) वृद्धावस्था कर के (परिवारितः) घिरे हुए हैं । (रजनी) रात 'उपलक्षण से दिन रूप' ( अमोहा ) अविरल धारा ' पड़ रही है ऐसा तत्वज्ञों ने' (उक्ता) कहा है ( एवं) इस प्रकार (विजानीयात् ) समझो ।। २३ ॥
भावार्थ-हे पिता! इस संसार में प्राणिमात्र मृत्यु के दुःख से पीड़ित और वृद्धा अवस्था कर के घिरे हुए हैं सदैव रात दिन समय रूप विश्राम रहित धारा पड़ रही है इस प्रकार आप अपने हृदय में प्रश्नों का उत्तर समझ लीजियेगा ॥२३॥
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